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8.31.2011

मारुति सुज़ुकी, मानेसर के आन्‍दोलनरत मज़दूरों की प्रबुद्ध मीडियाकर्मियों से अपील


आदरणीय मीडियाकर्मियों,

जिस वक्‍त दिल्‍ली में जन लोकपाल के मुद्दे पर आन्‍दोलन की सफलता का जश्‍न मनाया जा रहा था, ठीक उसी वक्‍त राजधानी दिल्‍ली के ऐन बगल में हज़ारों ग़रीब मज़दूरों के लोकतांत्रिक अधिकारों का गला घोंटा जा रहा था। आपको पता ही होगा कि किस तरह से भारत की सबसे बड़ी कार कम्‍पनी मारुति सुज़ुकी इंडिया लिमिटेड के मैनेजमेण्‍ट ने 29 अगस्‍त की सुबह से मानेसर, गुड़गांव स्थित कारख़ाने में जबरन तालाबन्‍दी कर दी है। मैनेजमेण्‍ट ने अनुशासनहीनता और 'काम धीमा करने' का झूठा आरोप लगाकर 11 स्‍थायी मज़दूरों को बर्खास्‍त कर दिया है और 10 को निलम्बित कर दिया है। कम्‍पनी ने एक निहायत तानाशाहीभरा और सरासर ग़ैरक़ानूनी ''उत्तम आचरण शपथपत्र'' (गुड कंडक्‍ट बॉण्‍ड) भी मज़दूरों पर थोप दिया है और यह फ़रमान जारी कर दिया है कि जो मज़दूर इस पर हस्‍ताक्षर नहीं करेगा उसे ''हड़ताल पर'' माना जाएगा और कारख़ाने में दाखिल नहीं होने दिया जाएगा।
इस पत्र के अन्‍त में बॉण्‍ड का पाठ दिया गया है, आप स्‍वयं उसे पढ़कर देख सकते हैं कि यह किस कदर अलोकतांत्रिक और निरंकुश है और भारत के संविधान में उल्लिखित मूलभूत अधिकारों का हनन करता है।
आपने यह भी पढ़ा और देखा ही होगा कि मारुति सुजु़की के हम मज़दूर किन परिस्थितियों में काम करते हैं। राज्‍य द्वारा पारित श्रम क़ानूनों के तहत हमें अपनी स्‍वतंत्र यूनियन बनाने का अधिकार है लेकिन कम्‍पनी के कहने पर हमें ग़ैरक़ानूनी तरीके से इस बुनियादी अधिकार से भी वंचित किया जा रहा है ताकि हम अपने साथ होने वाले अन्‍याय के विरुद्ध आवाज़ न उठा सकें।
आप लोगों ने अण्‍णा जी के आन्‍दोलन को अभूतपूर्व कवरेज और समर्थन दिया है। मीडिया के इस प्रचण्‍ड समर्थन और सहयोग के बिना यह आन्‍दोलन न इतना व्‍यापक हो सकता था और न ही इतना सफल। आप लोग जनता के अधिकारों और न्‍याय तथा लोकतंत्र की बात करते हैं। क्‍या इन घनघोर अलोकतांत्रिक कार्रवाइयों के विरुद्ध मज़दूरों के संघर्ष को आपका समर्थन और सहयोग नहीं मिलेगा? क्‍या मज़दूरों को उनके मूलभूत अधिकारों से वंचित करना भ्रष्‍टाचार नहीं है? क्‍या सरकार और कम्‍पनी मैनेजमेण्‍ट की यह मिलीभगत जनता के प्रतिनिधियों द्वारा जनता से विश्‍वासघात और भ्रष्‍टाचार का मामला नहीं है? क्‍या इस संघर्ष को मात्र इतनी कवरेज मिलेगी कि दिन में एक-दो बार कुछ सेकंड का समाचार दे दिया जाये जिसमें इस बात की चिन्‍ता अधिक हो कि मज़दूरों के आन्‍दोलन के कारण कम्‍पनी को कितना घाटा हो रहा है? हमें ऐसी कोई रिपोर्ट देखने को नहीं मिली जिसमें जन लोकपाल आन्‍दोलन के कारण देश में उत्‍पादन को हुए घाटे का हिसाब लगाया हो। फिर मज़दूरों के साथ ही यह दोहरा रवैया क्‍यों?
साभार : हिंदू बिज़नस लाइन
यह प्रश्‍न केवल मारुति के एक कारखाने के 3000 मज़दूरों का नहीं है। गुड़गांव के लाखों मज़दूरों और देशभर के करोड़ों मज़दूरों के साथ रोज़ यही सलूक होता है। गुड़गांव और उसके आसपास फैले विशाल औद्योगिक क्षेत्र में स्थित सैकड़ों कारख़ानों में कम से कम 20 लाख मज़दूर काम करते हैं। अकेले आटोमोबाइल उद्योग की इकाइयों में करीब 10 लाख मज़दूर काम करते हैं। अत्‍याधुनिक कारखानों में दुनिया भर की कंपनियों के लिए आटो पार्ट्स बनाने वाले ये मज़दूर बहुत बुरी स्थितियों में काम करते हैं। इनमें से 90 प्रतिशत से भी अधिक ठेका मज़दूर हैं जो 4000-5000 रुपये महीने पर 10-10, 12-12 घंटे काम करते हैं, काम की रफ़्तार और बोझ बेहद अधिक होता है और लगातार सुपरवाइज़रों तथा सिक्‍योरिटी वालों की गाली-गलौज और मारपीट तक सहनी पड़ती है।
हम आपसे और सभी मीडिया कर्मियों से अपील करते हैं कि अन्‍याय और निरंकुशता के विरुद्ध मूलभूत  लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए इस संघर्ष में हमारा साथ दें। आप मीडियाकर्मी के साथ ही एक प्रबुद्ध और ज़ि‍म्‍मेदार नागरिक भी हैं। हम चाहते हैं कि मज़दूरों की न्‍यायसंगत मांगों को स्‍वीकार करने के लिए आप सरकार पर भी दबाव डालें। हम आपको कारखाना गेट पर धरना स्‍थल पर भी आमंत्रित करते हैं।
अग्रिम धन्‍यवाद और सादर अभिवादन सहित,

-- बिगुल मज़दूर दस्‍ता तथा मारुति सुज़ुकी एवं गुड़गांव के विभिन्‍न कारख़ानों में काम करने वाले कुछ मज़दूर
संपर्क: सत्‍यम (9910462009), रूपेश (9213639072),  सौरभ (9811841341)
                                                              http://www.petitiononline.com/MSIL298/petition.html
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उत्तम आचरण का शपथपत्र
प्रमाणित स्‍थायी आदेश के अनुच्‍छेद 25(3) की शर्तों के अनुसार
मैं,…………………………………. सुपुत्र, श्री  ................स्‍टाफ संख्‍या.................एतदद्वारा स्‍वेच्छा से और बिना किसी दबाव में आए, प्रमाणित स्‍थायी आदेश के अनुच्‍छेद 25(3) के अनुसार इस उत्तम आचरण शपथपत्र को लागू करता हूं और इस पर हस्‍ताक्षर करता हूं। मैं शपथ लेता हूं कि अपनी ड्यूटी ज्‍वाइन करने पर मैं अनुशासनबद्ध होकर सामान्‍य उत्‍पादन कार्य करूंगा और मैं धीमे काम नहीं करूंगा,  बीच-बीच में काम नहीं रोकूंगा, कारख़ाने के भीतर रुककर हड़ताल नहीं करूंगा, नियमानुसार काम (वर्क टु रूल) नहीं करूंगा, तोड़फोड़ या कारखाने के सामान्‍य उत्‍पादन को प्रभावित करने वाली अन्‍य किसी गतिविधि में भाग नहीं लूंगा। मुझे ज्ञात है कि धीमे काम कम करना, बीच-बीच में काम रोकना, कारख़ाने के भीतर रुककर हड़ताल करना (), या सामान्‍य उत्‍पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली कोई भी गतिविधि प्रमाणित स्‍थायी आदेश के तहत गंभीर दुराचरण की श्रेणी में आती है और ऐसा कोई भी कार्य करने पर प्रमाणित स्‍थायी आदेश के अनुच्‍छेद 30 के तहत दिए जाने वाले दंड में,  बिना नोटिस के काम से निकाला जाना शामिल है। अत:, मैं एतदद्वारा सहमति देता हूं कि यदि, ड्यूटी ज्‍वाइन करने के बाद, मुझे काम धीमा करने, बीच-बीच में काम रोकने, स्‍टे-इन स्‍ट्राइक करने,  वर्क टु रूल करने, तोड़फोड़ या सामान्‍य उत्‍पादन को बाधित करने वाली किसी भी अन्‍य गतिविधि में शामिल पाया जाता है, तो मुझे प्रमाणित स्‍थायी आदेश के तहत सेवा से  बर्खास्‍त किया जा सकता है।

दिनांक :........................                                                      कर्मचारी के हस्‍ताक्षर

5.12.2011

मीडिया के अपने मित्रों का आभार और चंद बातें

मीडिया के अपने मित्रों का आभार और चंद बातें


प्रिय मित्रो,

पिछले 3 मई को गोरखपुर में अंकुर उद्योग के मालिक द्वारा मजदूरों पर गोलियां चलवाने और उसके बाद से मजदूर आंदोलन के दमन के सिलसिले में आपसे ख़तो-किताबत तथा बातचीत होती रही है। हमारी ओर से भेजी गई ईमेल आदि तथा अपने स्रोतों से आपको मालूम ही होगा कि मज़दूरों की एकता तथा देशभर में हुई निंदा और चौतरफा दबाव के बाद 9 तारीख़ की रात को गोरखपुर का प्रशासन व अंकुर उद्योग का मालिक झुकने को मजबूर हो गए। फिलहाल अंकुर उद्योग के मालिक ने कुछ मांगें मानी हैं और 18 मजदूरों को काम पर वापस रखा है तथा फैक्‍ट्री चालू हो गई है।

हालांकि अब भी वी.एन. डायर्स के दो कारखानों में तालाबंदी जारी है, सत्तर-अस्‍सी गुण्‍डों को लेकर मजदूरों पर गोलियां चलाने वाला प्रदीप सिंह अभी तक पकड़ा नहीं गया और ना ही मजदूरों पर से फर्जी मुकदमे वापस लिए गए हैं,न घायल मज़दूरों को मुआवज़ा घोषित हुआ है, न इस बर्बर गोलीकांड के लिए मालिक पर कोई कार्रवाई हुई है और न ही न्‍यायिक जांच के आदेश दिए गए हैं। फिर भी, दमन-उत्‍पीड़न से मज़दूरों को राहत मिली है और मालिकान तथा प्रशासन पीछे हटने पर बाध्‍य हुए हैं, आगे के लिए बातचीत करने पर भी राजी होना पड़ा है।
निश्चित ही, इसके लिए मुख्‍य रूप से बधाई के पात्र गोरखपुर के मजदूर ही हैं जिन्‍होंने दमन का डटकर मुकाबला किया; लेकिन देशभर में हुई निंदा तथा जनदबाव का और मीडिया के आप सभी साथियों के सहयोग और समर्थन का इसमें बहुत बड़ा योगदान है। इसके लिए मैं 'गोरखपुर मजदूर आंदोलन समर्थक नागरिक मोर्चा' की ओर से मीडिया के सभी साथियों का आभार प्रकट करना चाहता हूं (दो वर्ष पहले गोरखपुर के मज़दूर आंदोलन के दमन के समय गठित इस मोर्चे में मैं शामिल रहा हूं)।
मैं लंबे समय तक देश के कई प्रतिष्ठित हिंदी अखबारों से जुड़ा रहा हूं और पिछले तीन साल से स्‍वतंत्र रूप से पत्रकारिता कर रहा हूं। मुझे इस बात का अहसास है कि तमाम ''दबावों'' के बावजूद मीडिया के साथियों ने जिस तरह इस पूरे मामले को अपने पत्र-पत्रिका/चैनल में स्‍थान दिया, वह काफी चुनौतीपूर्ण रहा होगा। चौतरफा निंदा और मीडिया की खबरों से गोरखपुर के मालिकान-प्रशासन पर जो दबाव बना है उसमें आप सभी का योगदान सराहनीय है।
लेकिन, मैं एक बात की ओर ध्‍यान दिलाना चाहूंगा। दो साल पहले भी गोरखपुर में मजदूरों का आंदोलन चला था। उस समय भी जनदबाव और मीडियाकर्मियों के सहयोग के कारण मालिकान-प्रशासन-राजनेता गठजोड़ को झुकना पड़ा था। लेकिन उस समय तीन-चार बार किए गए समझौते आज तक लागू नहीं हुए। अगुआ मजदूरों को चुन-चुन कर प्रताड़ि‍त किया गया तथा समय बीतने के साथ झूठे आरोप लगाकर एक-एक करके उन्‍हें निकाल बाहर किया। और इस बार भी मालिक-प्रशासन ऐसा ही कर सकते हैं। हालत यह है कि चुपचाप सबकुछ सहकर काम करो, तो आप शांत, आज्ञाकारी, मेहनती, विकास को बढ़ावा देने वाले आदि-आदि हैं, वरना आप उकसावेबाज, माओवादी, नक्‍सलवादी करार दिए जाएंगे (वैसे हम मीडियाकर्मियों की स्थिति भी बहुत अच्‍छी नहीं है, और इस बात को आपसे बेहतर कौन जानता होगा?)। उस समय भाजपा के स्‍थानीय सांसद आदित्‍यनाथ ने लगातार मजदूरों और उनके नेताओं के खिलाफ जहर उगला था और पहले तो इसे सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास किया तथा मजदूरों को कामचोर तक कहा। बाद में, थू-थू होने पर उन्‍होंने मजदूरों के नेताओं को निशाना बनाया और अखबारों में बयान जारी करके उन पर नक्‍सलवादी-माओवादी-बाहरी तत्‍व आदि का लेबल चस्‍पां करने लगे। प्रशासन भी मालिकों के सुर में सुर मिलाता रहा। (अभी मोहल्‍ला लाइव पर इस आंदोलन की खबर पर गौरव सोलंकी ने टिप्‍पणी की है कि ''मुझे एक बात याद आई। तहलका में जब मैंने गोरखपुर के मजदूरों की स्टोरी की थी पिछले साल, तब वहाँ के डिप्टी लेबर कमिश्नर को फ़ोन किया था उनकी राय जानने के लिए। उन्होंने कहा कि आपको जो करना है, कर लो। जहाँ श्रम विभाग के अधिकारी ही डॉन के लहजे में बात करते हैं, वहाँ स्थितियाँ कितनी भयावह हो सकती हैं, आप सोचिए।'') मज़दूर नेताओं को बातचीत के बहाने बुलाने के बाद मारा-पीटा गया और फर्जी मुकदमे तक दायर कर दिए। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार उनका एनकाउंटर तक करने की कोशिश की गई। लेकिन उस समय भी जनदबाव और मीडिया में मौजूद साथियों की तत्‍परता के कारण वे इस घृणित कार्य को अंजाम नहीं दे सके।

मजदूरों के जुझारू संघर्ष और देशव्‍यापी जनदबाव से गोरखपुर में मजदूर आंदोलन को मिली आंशिक जीत

पुलिस-प्रशासन के भारी दमन के बावजूद गोरखपुर के मजदूरों के जुझारू संघर्ष और एक सप्ताह से जारी दमन-उत्पीड़न की देशव्यापी निंदा तथा व्यापक जनदबाव ने प्रशासन और मालिकान को कदम पीछे खींचने पर मजबूर कर दिया और वहां मजदूर आंदोलन को आंशिक जीत हासिल हुई है।

कल ‘मजदूर सत्याग्रह’ के लिए शांतिपूर्ण ढंग से आयुक्त कार्यालय पर जा रहे मजदूरों पर शहर में जगह-जगह हुए लाठीचार्ज, गिरफ्तारी, सार्वजनिक वाहनों तक से उतारकर मजदूरों की पिटाई और महिला मजदूरों के साथ पुलिस के दुर्व्‍यवहार की चौतरफा भर्त्सना और सैकड़ों मजदूरों के टाउनहाल पर भूख हड़ताल शुरू कर देने के बाद प्रशासन भारी दबाव में आ गया था। अधिकारियों ने देर शाम हिरासत में लिये गये सभी मजदूर नेताओं और मजदूरों को रिहा कर दिया तथा मालिकों को वार्ता के लिए बुलाया था। कुछ मांगों पर मालिक की सहमति तथा आज औपचारिक वार्ता तय होने के बाद कल रात अधिकांश मजदूरों ने भूख हड़ताल स्थगित कर धरना हटा लिया था लेकिन करीब 25 मजदूरों की भूख हड़ताल जारी थी।
आज उपश्रमायुक्त की मौजूदगी में मालिकों तथा मजदूरों के प्रतिनिधियों के बीच हुई वार्ता के बाद अंकुर उद्योग से निकाले गये सभी 18 मजदूरों को काम पर वापस लेने तथा कारखाना कल से शुरू करने पर मालिक पक्ष सहमत हो गया। हालांकि वीएन डायर्स के दो कारखानों से निकाले गये 18 मजदूरों को बहाल करने के सवाल पर अब भी गतिरोध बना हुआ है।

आंदोलन का संचालन कर रहे संयुक्त मजदूर अधिकार संघर्ष मोर्चा के अनुसार गोलीकांड के मुख्य अभियुक्तों की गिरफ्तारी तथा अभियुक्तों को बचाने वाले अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई, घायल मजदूरों को सरकार से मुआवजा दिलाने, मजदूरों पर थोपे गये सभी फर्जी मुकदमे हटाने तथा गोलीकांड और 9 मई को ‘मजदूर सत्याग्रह’ पर हुए बर्बर दमन की न्यायिक जांच की मांग को लेकर आंदोलन जारी रहेगा। अगर ये मांगें नहीं मानी गयीं तो जल्दी ही ‘मजदूर सत्याग्रह’ का दूसरा चरण शुरू किया जाएगा, जो पहले से भी अधिक व्यापक होगा।

कल ‘मजदूर सत्याग्रह’ के बर्बर दमन की देश-विदेश में कठोर भर्त्सना हुई है। देश भर से न्यायविदों, बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और मजदूर आंदोलन से जुड़े लोगों ने उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री, राज्यपाल, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों तथा केंद्र सरकार को सैकड़ों की संख्या में फैक्स, ईमेल, फोन तथा ज्ञापन भेजकर अपना विरोध दर्ज कराया है तथा दमन चक्र तत्काल रोकने, घटना की तुरंत न्यायिक जांच कराने, मजदूरों की जायज मांगे मानने और दोषियों की खिलाफ त्वरित कार्रवाई करने की मांग की है। पीयूसीएल एवं पीयूडीआर की ओर से जांच टीमें गोरखपुर भेजने की घोषणा की गयी है और वरिष्ठ पत्रकारों तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं की कुछ स्वतंत्र जांच टीमें भी जल्दी ही तथ्यसंग्रह के लिए गोरखपुर जाएंगी।

सरकारी दमन तथा मालिक-प्रशासन-सांप्रदायिक ताकतों के गंठजोड़ द्वारा जारी अंधेरगर्दी के विरुद्ध भारी जन आक्रोश और व्यापक जनदबाव के कारण यह छोटी-सी जीत मिली है लेकिन गोरखपुर के मजदूरों के सामने अभी बहुत कठिन लड़ाई है और देशभर के इंसाफपसंद नागरिकों तथा किसी भी मोर्चे पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं को उनका साथ देना होगा। दमन-उत्पीड़न के तात्कालिक मसले पर मजदूरों को थोड़ी राहत मिली है लेकिन जिन बुनियादी मांगों को लेकर गोरखपुर में मजदूरों ने आवाज उठायी थी, वे आज भी यथावत हैं। वहां के किसी भी कारखाने में कोई भी श्रम कानून लागू नहीं होता। न्यूनतम मजदूरी, काम के घंटे, जबरन ओवरटाइम, जॉब कार्ड, ईएसआई जैसी बुनियादी सुविधाओं से भी मजदूर वंचित हैं। श्रम विभाग सब कुछ जानते हुए भी कुछ नहीं करता। जब तक इन मांगों पर ध्यान नहीं दिया जाएगा, तब तक बीच-बीच में मजदूर असंतोष का ज्वार फूटता ही रहेगा।

संयुक्त मजदूर अधिकार संघर्ष मोर्चा ने यह भी चेतावनी दी है कि अगर मालिकों ने फिर से पहले की तरह वायदाखिलाफी और छलकपट से मजदूरों को उनके अधिकार से वंचित करने की कोशिश की या अगुआ मजदूरों को किसी भी तरह से प्रताड़ित करने की कोशिश की तो इसके नतीजे भुगतने के लिए उन्हें तैयार रहना होगा।

मोर्चा ने मजदूर आंदोलन का भरपूर साथ देने तथा प्रशासन पर दबाव बनाने में मदद करने वाले न्यायविदों, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों व सामाजिक कार्यकर्ताओं को धन्यवाद देते हुए गोरखपुर के मजदूरों को न्याय दिलाने के संघर्ष में सभी से आगे भी सहयोग की अपील की है।

कृते,
गोरखपुर मजदूर आंदोलन समर्थक नागरिक मोर्चा
9936650658 (कात्यायनी)
9910462009 (सत्यम, satyamvarma@gmail.com)
8447011935 (संदीप, sandeep.samwad@gmail.com)

5.11.2011

मजदूरों पर हमले के खिलाफ आमरण अनशन का एलान

81 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता कमला पांडेय ने मायावती को लिखी चिट्ठी

प्रति,
सुश्री मायावती जी,
मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश


विषय : गोरखपुर के मजदूरों के बर्बर दमन की अविलंब निष्पक्ष जांच की मांग तथा ऐसा न होने की स्थिति में आमरण अनशन की पूर्व सूचना



प्रिय मायावती जी,

मैं,कमला पांडेय, आयु 81 वर्ष, साठ वर्षों से गरीबों-मजलूमों के लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ती रही हूं और उप्र माध्यमिक शिक्षक संघ की स्‍थापना के समय से ही उसमें सक्रिय रही हूं। अब जीवन की सांध्य बेला में, हृदय रोग और शारीरिक अशक्तता के बावजूद अपनी सामाजिक सक्रियता जारी रखते हुए मैं बच्चों की संस्था ‘अनुराग ट्रस्ट’ चलाती हूं।

महोदया, गोरखपुर के मजदूरों पर पिछले दो हफ्तों से पुलिस-प्रशासन और उद्योगपतियों के गुंडों का जो बर्बर आतंकराज जारी है, उसकी खबरें मुझे विचलित करती रही हैं। फर्जी मुकदमे, गिरफ्तारी, लाठीचार्ज आदि की कार्रवाई तो अप्रैल से ही जारी है। 3 मई को ‘अंकुर उद्योग’ के मालिकों के गुंडों द्वारा अंधाधुंध गोलीवर्षा में 19 मजदूर जख्मी हुए, जिनमें से एक अभी भी जीवन-मृत्यु के बीच झूल रहा है। आपके पुलिस प्रशासन ने गिरफ्तारी का बहाना बनाकर गुंडों को फैक्ट्री परिसर से बाहर निकालने का और मजदूर नेताओं पर नये फर्जी मुकदमे ठोंकने का काम किया। गोरखपुर के कमिश्नर वहां के भाजपा सांसद के सुर में सुर मिलाते हुए मजदूर नेताओं को ”बाहरी तत्व” और ”उग्रवादी” तक की संज्ञा दे रहे हैं। इन कर्मठ युवा नेताओं को मैं जानती हूं। ये मजदूर हितों के लिए संघर्षरत न्यायनिष्ठ लोग हैं।

महोदया, आज 9 मई को हजारों मजदूर दो फैक्ट्रियों की अवैध तालाबंदी समाप्त करने, मजदूरों से फर्जी मुकदमे हटाने और मजदूरों पर गोली चलाने की घटना की निष्पक्ष जांच और दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग को लेकर जब कमिश्नर कार्यालय की ओर शांतिपूर्ण ‘मजदूर सत्याग्रह’ शुरू करने जा रहे थे, तो उन पर बर्बर लाठीचार्ज और पानी की बौछार की गयी। शहर में कहीं भी उन्हें इकट्ठा होने से रोकने के लिए पुलिस ने आतंक राज कायम कर दिया। कई नेताओं, मजदूरों को हिरासत में ले लिया गया। इसके बावजूद, शाम 4 बजे मुझे सूचना मिलने तक कई सौ मजदूर टाउन हॉल, गांधी प्रतिमा के पास पहुंचकर अनशन की शुरुआत कर चुके थे।

मायावती जी, मजदूरों पर दमन का यह सिलसिला तो वास्तव में पिछले दो वर्षों से जारी है, जबसे वे कम से कम कुछ श्रम कानूनों को लागू करने की मांग कर रहे हैं।
आप स्वयं पता कीजिए कि गोरखपुर के कारखानों में क्या कोई भी श्रम कानून लागू होता है? यदि इनकी मांग उठाने वाले ”उग्रवादी” हैं तो मैं भी स्वयं को गर्व से ”उग्रवादी” कहना चाहूंगी। इस बार दमन और अत्याचार तो सारी सीमाओं को लांघ गया है। सत्ता में बैठे लोगों को यदि जनता निरीह भेड़-बकरी दीखने लगती है और इंसाफ की आवाज उनके कानों तक पहुंचती ही नहीं, तो इतिहास उन्हें कड़ा सबक सिखाता है।

मायावती जी, मैं विनम्रतापूर्वक आपको सूचित करना चाहती हूं कि यदि गोरखपुर के मजदूरों पर बर्बर अत्याचार बंद नहीं किया जाएगा, यदि मजदूरों पर गुंडों द्वारा गोली वर्षा के मामले की निष्पक्ष जांच नहीं होगी, यदि अवैध तालाबंदी खत्म करने के लिए प्रशासन मालिकों को बाध्य नहीं करेगा और यदि मजदूरों की

न्यायसंगत मांगों पर विचार नहीं किया जाएगा, तो मैं स्वयं व्हीलचेयर पर बैठकर मजदूर सत्याग्रह में हिस्सा लेने जाऊंगी। किसी लोकतांत्रिक, शांतिपूर्ण प्रतिरोध के लिए शासन से इजाजत लेना मैं जरूरी नहीं समझती। यदि न्याय की आवाज की अनसुनी की जाती रहेगी, तो आमरण अनशन करके प्राण त्यागना मेरे लिए गौरव की बात होगी। मुझे विश्वास है कि मेरे इस बलिदान से मजदूरों के संघर्ष को शक्ति मिलेगी और लोकतांत्रिक अधिकारों के संघर्ष में उतरने के लिए तथा न्याय की लड़ाई में शोषितों-दलितों का साथ देने के लिए बुद्धिजीवी समुदाय के अंतर्विवेक को भी झकझोरा जा सकेगा।


मायावती जी, मैं आपको धमकी या चेतावनी नहीं दे रही हूं। सत्ता की प्रचंड शक्ति के आगे मुझे जैसे किसी नागरिक की भला क्या बिसात? मैं आपसे अनुरोध कर रही हूं कि आप अपने स्तर से मामले की जांच कराकर न्याय कीजिए और सत्ता मद में चूर अपने निरंकुश अफसरों की नकेल कसिए। मैं इस न्याय संघर्ष में भागीदारी के अपने संकल्प की आपको सूचना दे रही हूं और विनम्रतापूर्वक बस यह याद दिलाना चाहती हूं कि लाठियों-बंदूकों से सच्चाई और इंसाफ की आवाज कुछ देर को चुप करायी जा सकती है, लेकिन हमेशा के लिए कुचली नहीं जा सकती।

साभिवादन,

भवदीया,
कमला पांडेय

दिनांक : 9/10/2011
संपर्क : डी 68, निरालानगर, लखनऊ 226020

गोरखपुर मजदूर गोलीकांड के विरोध में तैयार की गयी ऑनलाइन पिटिशन। कृपया आप भी हस्‍ताक्षर करें...


10.17.2009

गरीबों-दलितों की ''मसीहा'' मायावती का आतंकराज, मज़दूर कार्यकर्ताओं पर फर्जी मुकदमे

नक्‍सलवाद के नाम पर पहले भी जनांदलनों को कुचलने और उनके नेताओं को फर्जी मुकदमों में फंसाने की खबरें आती रही हैं, लेकिन अक्‍सर ऐसी खबरें छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्‍ट्र  आदि से मिलती थीं। अब उत्तर प्रदेश का शासन-प्रशासन भी इसी हथकण्‍डे को अपनाने लगा है। परसों देर रात गोरखपुर में तीन मज़दूर कार्यकर्ताओं को फर्जी आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया गया। सूत्र बता रहे हैं कि जिस फैक्‍ट्री के मजदूर पिछले लगभग ढाई महीने से आन्‍दोलन कर रहे थे, उसके मालिक की शह पर प्रशासन उस आन्‍दोलन की अगुवाई करने वालों को नक्‍सलवादी घोषित करके उन पर राजद्रोह का मामला दायर करने की तैयारी कर रहा है। इस मामलें में बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और छात्रों-पत्रकारों ने एक अपील जारी की है। आप इस अपील को पढ़ें और  जल्‍द से जल्‍द संबंधित नेताओं-अधिकारियों से अपना विरोध दर्ज़ कराएं। फोन और फैक्‍स नंबर इस अपील के अंत में दिए गए हैं।
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मज़दूर संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों के नाम अपील


मज़दूर आन्दोलन को कुचलने के लिए तीन नेतृत्वकारी युवा कार्यकर्ता झूठे 
आरोपों में गिरफ्तार, 9 मजदूरों पर फर्जी मुकदमे कायम



  • मामूली धाराओं में भी  22 अक्टूबर तक ज़मानत देने से इंकार, हिरासत में पिटाई
  • ''नक्सली'' ''आतंकवादी'' होने का आरोप लगाकर लंबे समय तक बंद रखने की तैयारी
  • मालिकों की शह पर पुलिसिया आतंकराज


पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर में करीब ढाई महीने से चल रहे मज़दूर आन्दोलन को कुचलने के लिए प्रशासन ने फैक्ट्री मालिकों के इशारे पर एकदम नंगा आतंकराज कायम कर दिया है। गिरफ्तारियां, फर्जी मुकदमे, मीडिया के जरिए दुष्प्रचार व धमकियों के जरिए मालिक-प्रशासन-नेताशाही का गंठजोड़ किसी भी कीमत पर इस न्यायपूर्ण आंदोलन को कुचलने पर आमादा है। 15 अक्टूबर की रात संयुक्त मजदूर अधिकार संघर्ष मोर्चा के तीन नेतृत्वकारी कार्यकर्ताओं - प्रशांत, प्रमोद कुमार और तपीश मैंदोला को गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस उन पर शांति भंग जैसी मामूली धाराएं ही लगा पाई लेकिन फिर भी 16 अक्टूबर को सिटी मजिस्ट्रेट ने उन्हें ज़मानत देने से इंकार करके 22 अक्टूबर तक जेल भेज दिया। इससे पहले 15 अक्टूबर की रात ज़िला प्रशासन ने तीनों नेताओं को बातचीत के लिए एडीएम सिटी के कार्यालय में बुलाया जहां काफी देर तक उन्हें जबरन बैठाये रखा गया और उनके मोबाइल फोन बंद कर दिये गये। उन्हें आन्दोलन से अलग हो जाने के लिए धमकियां दी गईं। इसके बाद उन्हें कैंट थाने ले जाया गया जहां उनके साथ मारपीट की गई। इसके अगले दिन मालिकों की ओर से इन तीन नेताओं के अलावा 9 मजदूरों पर जबरन मिल बंद कराने, धमकियां देने जैसे आरोपों में एकदम झूठा मुकदमा दर्ज कर लिया गया। गिरफ्तारी वाले दिन से ही जिला प्र्रशासन के अफसर ऐसे बयान दे रहे हैं कि इन मजदूर नेताओं को ”माओवादी“ होने की आशंका में गिरफ्तार किया गया है और उनके पास से ”आपत्तिजनक“ साहित्य आदि बरामद किया गया है। उल्लेखनीय है कि गोरखपुर के सांसद की अगुवाई में स्थानीय उद्योगपतियों और प्रशासन की ओर से शुरू से ही आन्दोलन को बदनाम करने के लिए इन नेताओं पर ‘‘नक्सली’’ और ‘‘बाहरी’’ होने का आरोप लगाया जा रहा है। कुछ अफसरों ने स्थानीय पत्रकारों को बताया है कि पुलिस इन नेताओं को लंबे समय तक अंदर रखने के लिए मामला तैयार कर रही है।
इससे पहले 15 अक्टूबर को जिलाधिकारी कार्यालय में अनशन और धरने पर बैठे मजदूरों पर हमला बोलकर उन्हें वहां से हटा दिया गया। महिला मजदूरों को घसीट-घसीटकर वहां से हटाया गया। प्रशांत, प्रमोद एवं तपीश को ले जाने का विरोध कर रही महिलाओं के साथ मारपीट की गई। ये मजदूर स्वयं प्रशासन द्वारा पिछले 24 सितम्बर को कराये गये समझौते को लागू कराने की मांग पिछले कई दिनों से प्रशासन से कर रहे थे। 3 अगस्त से जारी आन्दोलन के पक्ष में जबर्दस्त जनदबाव के चलते प्रशासन ने समझौता कराया था लेकिन मिलमालिकों ने उसे लागू ही नहीं किया। समझौते के बाद दो सप्ताह से अधिक समय बीत जाने के बावजूद आधे से अधिक मजदूरों को काम पर नहीं लिया गया है। थक हारकर 14 अक्टूबर से जब वे डीएम कार्यालय पर अनशन पर बैठे तो प्रशासन पूरी ताकत से उन पर टूट पड़ा। मॉडर्न लेमिनेटर्स लि. और मॉडर्न पैकेजिंग लि. के इन मजदूरों की मांगें बेहद मामूली हैं। वे न्यूनतम मजदूरी, जॉब कार्ड, ईएसआई कार्ड देने जैसे बेहद बुनियादी हक मांग रहे हैं, श्रम कानूनों के महज़ कुछ हिस्सों को लागू करने की मांग कर रहे हैं। बिना किसी सुविधा के 12-12 घंटे, बेहद कम मजदूरी पर, अत्यंत असुरक्षित और असहनीय परिस्थितियों में ये मजदूर आधुनिक गुलामों की तरह से काम करते रहे हैं। गोरखपुर के सभी कारखानों में ऐसे ही हालात हैं। किसी कारखाने में यूनियन नहीं है, संगठित होने की किसी भी कोशिश को फौरन कुचल दिया जाता है। पहली बार करीब पांच महीने पहले तीन कारखानों के मजूदरों ने संयुक्त मजदूर अधिकार संघर्ष मोर्चा बनाकर न्यूनतम मजदूरी देने और काम के घंटे कम करने की लड़ाई लड़ी और आंशिक कामयाबी पायी। इससे बरसों से नारकीय हालात में खट रहे हजारों अन्य मजदूरों को भी हौसला मिला। इसीलिए यह मजदूर आन्दोलन इन दो कारखानों के ही नहीं बल्कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के तमाम उद्योगपतियों को बुरी तरह खटक रहा है और वे हर कीमत पर इसे कुचलकर मजदूरों को ”सबक सिखा देना“ चाहते हैं। कारखाना मालिक पवन बथवाल दबंग कांगे्रसी नेता है और भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ का उसे खुला समर्थन प्राप्त है। प्रशासन और श्रम विभाग के अफसर बिके हुए हैं। शहर में आम चर्चा है कि मालिकों ने अफसरों को खरीदने के लिए दोनों हाथों से पैसा लुटाया है। मजदूरों ने पिछले दो महीनों के दौरान गोरखपुर से लेकर लखनऊ तक, हर स्तर पर बार-बार अपनी बात पहुंचायी है लेकिन ”सर्वजन हिताय“ की बात करने वाली सरकार कान में तेल डालकर सो रही है। मजदूरों और नेतृत्व के लोगों को डराने-धमकाने, फोड़ने की हर कोशिश नाकाम हो जाने के बाद पिछले महीने से यह सुनियोजित मुहिम छेड़ दी गई कि इस आन्दोलन को ‘‘माओवादी आंतकवादी’’ और ‘‘बाहरी तत्व’’ चला रहे हैं और यह ”पूर्वी उत्तर प्रदेश को अस्थिर करने की साज़िश“ है। इससे बड़ा झूठ कोई नहीं हो सकता।
संघर्ष मोर्चा में सक्रिय ये तीनों ही कार्यकर्ता जनसंगठनों से लंबे समय से जुड़कर काम करते रहे हैं। प्रशांत और प्रमोद विगत कई वर्षों से गोरखपुर के छात्रों और नौजवानों के बीच सामाजिक काम करते रहे हैं। पिछले वर्ष ‘गीडा’ के एक कारखाने के मज़दूरों तथा नगर महापालिका और विश्वविद्यालय के सफाई कर्मचारियों के आन्दोलनों में भी उनकी सक्रियता थी। शहर के अधिकांश प्रबुद्ध नागरिक और मज़दूर उन्हें जानते हैं। तपीश मैंदोला मज़दूर अखबार ‘बिगुल’ से जुड़े हैं और श्रम मामलों के विशेषज्ञ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। कई वर्षों से वे नोएडा, गाज़ियाबाद के सफाई मज़दूरों और फैक्ट्री मज़दूरों के बीच काम करते रहे हैं। इन दिनों उनके नेतृत्व में मऊ, मैनपुरी और इलाहाबाद में नरेगा के मज़दूर अपनी माँगों को लेकर संगठित हो रहे हैं। तपीश के नेतृत्व में दिल्ली और आसपास से मज़दूरों के खोये हुए बच्चों के बारे में प्रस्तुत बहुचर्चित रिपोर्ट पर इन दिनों दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है। ये तीनों साथी जन-आधारित राजनीति के पक्षधर हैं और आतंकवाद की राजनीति के विरोधी हैं। किसी भी जनान्दोलन को ‘‘माओवाद’’ का ठप्पा लगाकर कुचलने के नये सरकारी हथकंडे का यह एक नंगा उदाहरण है। इसका पुरज़ोर विरोध किया जाना बेहद ज़रूरी है। यह तमाम इंसाफ़पसंद नागरिकों, बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, छात्र-युवा कार्यकर्ताओं को सत्ता की सीधी चुनौती है! हमारी आपसे अपील है कि हर संभव तरीके से अपना विरोध दर्ज कराए। 
आप क्या कर सकते हैं - मज़दूर आन्दोलन के दमन और मजदूर नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री, प्रमुख सचिव, श्रम और श्रम मंत्री को, तथा गोरखुपर के जिलाधिकारी को फैक्स, ईमेल या स्पीडपोस्ट से विरोधपत्र भेजें। ईमेल की एक प्रति कृपया हमें भी फारवर्ड कर दें। - इस मुद्दे पर बैठकें तथा धरना-विरोध प्रदर्शन आयोजित करें। - अपने संगठनों की ओर से अपनी ओर से इसके विरोध में बयान जारी करें और हस्ताक्षर अभियान चलाकर उपरोक्त पतों पर भेजें। - दिल्ली में 21 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश भवन पर आयोजित विरोध प्रदर्शन में शामिल हों।

गोरखपुर के मजदूर आन्दोलन के समर्थक बुद्धिजीवियों, आम नागरिकों, छात्रों-युवाओं की ओर से,
कात्यायनी, सत्यम, मीनाक्षी, रामबाबू, कमला पाण्डेय, संदीप, संजीव माथुर, जयपुष्प, कपिल स्वामी, अभिनव, सुखविन्दर, डा. दूधनाथ, शिवार्थ पाण्डेय, अजय स्वामी, शिवानी कौल, लता, श्वेता, नेहा, लखविन्दर, राजविन्दर, आशीष, योगेश स्वामी, नमिता, विमला सक्करवाल, चारुचन्द्र पाठक, रूपेश राय, जनार्दन, समीक्षा, राजेन्द्र पासवान...




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