7.31.2008

अरविंद की शोक सभा में उनके अधूरे कामों को पूरा करने का संकल्प लिया

'अरविंद स्मृति न्यास' और 'अरविंद मार्क्‍सवादी अध्ययन संस्थान'
की स्थापना की घोषणा

नई दिल्ली, 31 जुलाई। 'दायित्वबोध' पत्रिका के संपादक और नौजवान भारत सभा के संयोजक का. अरविंद की शोकसभा में सभा में मौजूद सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं, छात्रों, बुध्दिजीवियों तथा मजदूर कार्यकर्ताओं ने अरविंद के अधूरे कामों को आगे बढ़ाने और उनके निधन के शोक को शक्ति के इस्पात में ढालने का संकल्प लिया। इस अवसर पर 'अरविंद स्मृति न्यास' और 'अरविंद मार्क्‍सवादी अध्ययन संस्थान' की स्थापना की घोषणा की।

कल शाम यहां अंबेडकर भवन में हुई सभा की शुरुआत अरविंद की जीवनसाथी और राजनीतिक कार्यकर्ता मीनाक्षी द्वारा उनकी तस्वीर पर माल्यार्पण के साथ हुई। सभा का संचालन कर रहे सत्यम ने उपस्थित जनसमूह को 24 जुलाई को गोरखपुर में अरविंद की आकस्मिक मृत्यु की परिस्थितियों से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि आज जैसे कठिन दौर में सामाजिक बदलाव की लड़ाई के लिए काम करते हुए चुपचाप अपनी जिंदगी को इस तरह होम कर देना किसी शहादत से कम नहीं है।

वरिष्ठ पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा ने अरविंद के व्यक्तित्व और उनके कामों को याद करते हुए कहा कि अरविंद एक जिंदादिल इंसान थे और मज़दूरों तथा युवाओं को संगठित करने के साथ-साथ दिल्ली के तमाम सामाजिक, राजनीतिक, और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी उनकी शिरकत बनी रहती थी। अरविंद के साथ तमाम मुददों पर उनकी बहसें चलती रहती थी। नए कार्यक्षेत्र की जिम्मेदारी संभालने के लिए दिल्ली से जाते समय वे एक अधूरी बहस को पूरा करने का वायदा करके गए थे लेकिन फिर उनसे मुलाकात नहीं हो सकी।

नेपाली जनधिकार मंच के लक्ष्मण पंत ने कहा कि कॉ. अरविंद दायित्वबोध के संपादन के साथ ही बिगुल अखबार के प्रकाशन-मुद्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे और इन दोनों पत्र-पत्रिकाओं में नेपाल के जनांदोलन के बारे में उनके लेखों ने, नेपाल के क्रान्तिकारियों को मार्क्‍सवाद की समझ विकसित करने में और सैद्धांतिक-व्यावहारिक प्रश्नों को हल करने में काफी मदद की। नेपाल की कम्युनस्टि पार्टी माओवादी इसके लिए उनकी आभारी रहेगी। आने वाले समय में कॉ. अरविंद के अधूरे कामों को पूरा करते हुए, उतनी ही दृढ़ता और जीवंतता के साथ सामाजिक बदलाव की लड़ाई जारी रखनी होगी।

इस अवसर पर कवयित्री और राहुल फाउण्डेशन की अध्यक्ष कात्यायनी ने अपने साथी अरविंद को याद करते हुए ने कहा कि अरविंद स्मृति न्यास और अरविंद मार्क्‍सवादी अध्ययन संस्थान के जरिए सामाजिक परिवर्तन के उन वैचारिक-सांस्कृतिक कार्यों को आगे बढ़ाया जाएगा जिनके लिए अरविंद निरंतर प्रयासरत थे। उन्होंने कहा कि अरविंद हमारे बीच नहीं रहे इसका अहसास कर पाना मुश्किल हो रहा है, लेकिन हमें इस शोक से उबर कर अरविंद के अधूरे कामों, योजनाओं को पूरा करना ही होगा और यही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

नेपाली जनाधिकार मंच के लक्ष्मण पंत ने कहा कि कॉ. अरविंद के संपादन में 'दायित्वबोध' पत्रिका और 'बिगुल' अखबार में प्रकाशित होने वाली गंभीर वैचारिक सामग्री ने नेपाल के क्रांतिकारी आंदोलन के सैद्धांतिक-व्यावहारिक प्रश्नों को हल करने में काफी मदद की। नेपाल के क्रांतिकारी उन्हें हमेशा एक सच्चे अंतरराष्ट्रीयतावादी के रूप में याद रखेंगे।

वरिष्ठ स्तंभकार सुभाष गाताड़े ने वाराणसी में अपने छात्र जीवन के दौर से अरविंद के साथ काम करने के अनुभवों को याद करते हुए कहा कि वे अपने लक्ष्य और उसूलों के प्रति दिलोजान से समर्पित थे।

वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया ने कहा कि कॉ. अरविंद में एक बड़े नेतृत्व की संभावना दिखती थी। इसके बावजूद उनकी सरलता ने मुझे प्रभावित किया। हर बार उनसे मिलने पर एक नया भरोसा पैदा होता था। नए समाज के निर्माण के संघर्ष में उनकी समझ एवं दृढ़ता हमारे साथ रहेगी।

साहित्यकार रामकुमार कृषक ने कहा कि जिस दौर में दुनियाभर में समाजवाद के अंत और समाजवादी राज्य के विघटन का हल्ला हो रहा था उस दौर में भी अरविंद अपने विचारों और कर्मों पर दृढ़ थे। वे संस्कृति और साहित्य को सामाजिक बदलाव का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र मानते थे। उन्होंने कहा कि अरविंद की सहजता और सरलता से उनकी बौद्धिक क्षमता का पता नहीं चलता था।

दिशा छात्र संगठन के अभिनव ने कहा कि अरविंद ने व्यापक मेहनतकश आबादी की जीवन परिस्थितियों की बेहतरी के अलावा जीवन में कभी किसी अन्य चीज की परवाह नहीं की। तृणमूल स्तर के सांगठनिक और आंदोलनात्मक कामों के साथ-साथ वे पत्र-पत्रिकाओं में लेखन-संपादन की जिम्मेदारी संभालने तथा देश के विभिन्न हिस्सों में संगोष्ठियों में भागीदारी तथा विचार-विमर्श का काम भी अत्यंत कुशलतापूर्वक कर लेते थे।

कपिल स्वामी ने कहा कि अरविंद जहां भी जाते थे युवा कार्यकर्ताओं की टीम खड़ी कर लेते थे तथा बड़ी लगन और सरोकार के साथ उन्हें शिक्षित-प्रशिक्षित करते थे। अंतिम समय तक उन्हें अपने साथियों की चिंता थी।

एआईपीआरएफ के अंजनी ने अरविंद को जनता के एक सच्चे हितैषी तथा पूरी निष्ठा के साथ सामाजिक परिवर्तन की मुहिम के प्रति समर्पित थे।

मज़दूर कार्यकर्ता राजेन्द्र पासवान ने कहा कि अरविंद से ऐसे दौर में संपर्क हुआ, जब मैं आंदोलन के भविष्य को लेकर निराशा से गुज़र रहा था, लेकिन उन्होंने मुझमें नया उत्साह भर दिया। जब कभी हमारे पैर डगमगाएंगे तो हम अरविंद को याद करेंगे।

सभा में एआईएफटीयू के पी.के. शाही, हमारी सोच पत्रिका के संपादक सुभाष शर्मा आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। कवि आलोक धन्वा, नीलाभ, असद ज़ैदी, निशांत नाटय मंच के शम्सुल इस्लाम, यूएनआई इंप्लाइज फेडरेशन के महासचिव सी.पी. झा, समाजवादी जन परिषद के अफलातून, वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र कुमार, अनुराग ट्रस्ट की अध्यक्ष कमला पाण्डेय तथा काठमांडू स्थित पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता मैरी डीशेन ने इस अवसर पर भेजे अपने संदेशों में अरविंद को याद किया।

विहान सांस्कृतिक मंच ने ''कारवां बढ़ता रहेगा...'' गीत के साथ अरविंद को श्रद्धांजलि दी।

इस अवसर पर दिशा छात्र संगठन, नौजवान भारत सभा, दिल्ली जनवादी अधिकार मंच, पीयूडीआर, प्रगतिशील महिला संगठन, एआईपीआरएफ, मेहनतकश मजदूर मोर्चा, सिलाई मजदूर समिति सहित विभिन्न जनसंगठनों के कार्यकर्ता, शिक्षक, लेखक, पत्रकार आदि उपस्थित थे।


7.25.2008

हमारे साथी अरविंद नहीं रहे, उनको हम सब का सलाम

दायित्वबोध' पत्रिका के सम्पादक और क्रान्तिकारी कार्यकर्ता अरविन्द सिंह की गुज़री रात गोरखपुर में मृत्यु हो गई। वह पिछले सात दिनों से बीमार चल रहे थे। बुधवार की शाम उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां अचानक उनकी स्थिति बिगड़ गई। बृहस्पतिवार की रात 9:40 पर उन्होंने अन्तिम सांस ली। वे 43 बरस के थे।
विद्यार्थी जीवन से ही अरविन्द सामाजिक बदलाव के आन्दोलन से जुड़े रहे थे। छात्रों की पत्रिका 'आह्नान' के शुरू होने के वक्त वह उसके सम्पादक मंडल में भी थे। उन्होंने अनेक वर्षों तक गोरखपुर, वाराणसी, लखनऊ और दिल्ली में छात्रों, युवाओं और मज़दूरों के बीच काम किया था। मज़दूर अख़बार 'बिगुल' के सम्पादन-प्रकाशन के साथ ही वह गोरखपुर में सघन आन्दोलनात्मक और सांगठनिक गतिविधियों में व्यस्त थे। एक कुशाग्र लेखक और वक्ता होने के साथ ही अरविन्द एक क्षमतावान अनुवादक भी थे। उन्होंने बड़ी संख्या में सैद्धान्तिक सामग्री के अनुवाद के अलावा देनी दिदेरो के प्रसिद्ध उपन्यास 'रामो का भतीजा' का भी अनुवाद किया।
अरविन्द अपने पीछे पत्नी मीनाक्षी, जो कि स्वयं एक क्रान्तिकारी कार्यकर्ता हैं, और दोस्तों-मित्रों और हमराहों की एक बड़ी संख्या छोड़ गए हैं।

प्रिय साथी अरविंद को क्रांतिकारी सलाम!

यह सन्नाटा जब बीत चुका रहेगा यारो
यह ख़ामोशी जब टूट चुकी रहेगी
मुमकिन है कि हम मिलें
तो थोड़े से बचे हुए लोगों के रूप में
कहीं शाल-सागौन के घने सायों में
गुलमोहर-अमलतास-कचनार की बातें करते हुए
हृदय पर एक युद्ध की गहरी छाप लिये
और सबको दिखायी पड़ने वाला एक दूसरा
समूचा का समूचा युद्ध सामने हो।
सन्नाटे के ख़िलाफ
यह युद्ध है ही ऐसा
कि इसमें खेत रहे लोगों को
श्रद्धां‍जलि नहीं दी जाती,
बस कभी झटके से
वे याद आ जाते हैं
बरबस
अपनी कुछ अच्छाइयों की बदौलत।