7.30.2009

मजदूरी मांगने पर पिटवाया मेट्रो कामगार संघर्ष समिति के उपाध्‍यक्ष को

मजदूरी मांगी तो नंगा कर पिटवाया, पुलिस ने रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की

नई दिल्ली। बुधवार दिल्‍ली मेट्रो के एक ठेकेदार ने मजदूरी मांगने पर मेट्रो कामगार संघर्ष समिति के उपाध्‍यक्ष को न केवल बंधक बना लिया बल्कि बंद कमरे में नंगा कर गुण्डो से पिटवाया। हैवानियत की हद तो तब हो गई जब उसे निर्वस्त्र कर उसके कूल्हों पर डंडे से प्रहार किए गए और फिर वही डंडा उसकी टांगो में फंसाकर उसे मुर्गा बनाकर दौड़ाया गया। बाद में उसे फंदे पर लटका कर जान से मारने की कोशिश भी की गई। मजदूर नेता का कसूर केवल इतना था कि उसने न्यूनतम मजदूरी व छुट्टी की मांग की थी। विडंबना यह है कि घटना के 24 घंटे बाद भी पुलिस ने मामला नहीं दर्ज किया है।
यह घटना कल शाम मेट्रो के नजफगढ़ डिपो के पीछे हुई जहां एक पुराने गैराज में मेट्रो के सफाई कर्मचारी विपिन शाह को लगभग छह घंटे तक बंधक बना कर पीटा गया। पीड़ित विपिन शाह द्वारका मेट्रो स्टेशन पर वर्ष 2005 से सफाई कर्मचारी के रूप में ठेकेदार के अधीन कार्य कर रहा था। पिछले वर्ष नवंबर में सफाई का ठेका एराईस कारपोरेट सर्विस प्राइवेट लिमिटेड ने ले लिया। विपिन के अनुसार नवंबर से मार्च माह तक वह इसी कंपनी के अधीन कार्य कर रहा था, मार्च में जब उसने कंपनी से न्यूनतम मजदूरी व साप्ताहिक अवकाश की मांग की तो उसे नौकरी से निकाल दिया गया। न्याय के लिए विपिन ने श्रम विभाग का दरवाजा खटखटाया लेकिन वहां भी उसे न्याय नहीं मिला।
ठेकेदार कंपनी को जब विपिन के श्रम विभाग में जाने की सूचना मिली तो कल शाम लगभग 4 बजे ठेकेदार कंपनी के प्रोजेक्ट मैनेजर सुनील कुमार ने उसे उसकी मजदूरी देने के लिए फोन कर नजफगढ़ मेट्रो डिपो बुलाया। लगभग साढ़े चार बजे वह सुनील से मिलने जब डिपो पहुंचा तो वह उसे डिपो के पीछे एक सुनसान स्थल पर स्थित पुराने गैराज में ले जाया गया जहां तीन बदमाशों ने उसे जमकर पीटा। पहले तो उसके गले में रस्सी बांधकर उसे फंदा लगाने व उसके टुकड़े करके नजफगढ़ नाले में फेंकने की धमकी दी गई बाद में उसके सारे कपड़े उतरवा लिए गए। विपिन ने बताया कि रात्रि 10.30 बजे तक उसके साथ मारपीट होती रही। इसके बाद बदमाश उसे कमरे से बाहर लाए जहां से वह किसी तरह भाग निकला। बुधवार सुबह वह मेट्रो कामगार यूनियन के पदाधिकारियों के साथ राजौरी गार्डन मेट्रो थाने गया लेकिन इसे मेट्रो से बाहर का मामला बताकर वापस कर दिया। बाद में वह नजफगढ़ थाने पहुंचा जहां उसे दूसरे थाने का मामला बताकर लौटा दिया। इसके बाद वह थाना छांवला पहुंचा जहां पुलिस ने उसकी सिर्फ तहरीर लेकर उसकी चिकित्सीय जांच कराई।

7.19.2009

भूमण्डलीकरण के दौर में श्रम कानून और मज़दूर वर्ग के प्रतिरोध के नये रूप

(हमारे प्रिय साथी अरविंद सिंह के निधन के एक वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। इस मौके पर प्रथम अरविन्‍द स्‍मृति संगोष्‍ठी का आयोजन किया जा रहा है। अरविंद के जीवन के मकसद से जुड़े विषय भूमण्‍डलीकरण के दौर में श्रम कानून और मज़दूर वर्ग के प्रतिरोध के नये रूप पर यह संगोष्‍ठी हो रही है। सभी इच्‍छुक लोग सादर आमंत्रित हैं। विस्‍तृत आमंत्रण नीचे दे रहा हूं।)
प्रथम अरविन्द स्मृति संगोष्‍ठी
(24 जुलाई, 2009)
विषय: भूमण्डलीकरण के दौर में श्रम कानून और मज़दूर वर्ग के प्रतिरोध के नये रूप

यह संगोष्ठी हम अपने प्रिय दिवंगत साथी अरविन्द सिंह की स्मृति में आयोजित कर रहे हैं। 24 जुलाई, 2009 साथी अरविन्द की पहली पुण्यतिथि है। गत वर्ष इसी दिन, उनका असामयिक निध्न हो गया था। तब उनकी आयु मात्र 44 वर्ष थी। वाम प्रगतिशील धारा के अधिकांश बुद्धिजीवी, क्रान्तिकारी वामधारा के राजनीतिक कार्यकर्ता और मज़दूर संगठनकर्ता साथी अरविन्द से परिचित हैं। वे मज़दूर अख़बार `बिगुल´ और वाम बौद्धिक पत्रिका `दायित्वबोध´ से जुड़े थे। छात्र-युवा आन्दोलन में लगभग डेढ़ दशक की सक्रियता के बाद वे मज़दूरों को संगठित करने के काम में लगभग एक दशक से लगे हुए थे। दिल्ली और नोएडा से लेकर पूर्वी उत्तरप्रदेश तक कई मज़दूर संघर्षों में वे अग्रणी भूमिका निभा चुके थे। अपने अन्तिम समय में भी वे गोरखपुर में सफाईकर्मियों के आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे थे। उनका छोटा किन्तु सघन जीवन राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणा का अक्षय स्रोत है। `भूमण्डलीकरण के दौर में श्रम कानून और मज़दूर वर्ग के प्रतिरोध के नये रूप´ जैसे ज्वलन्त और जीवन्त विषय पर संगोष्ठी का आयोजन ऐसे साथी को याद करने का शायद सबसे सही-सटीक तरीका होगा। हम सभी मज़दूर कार्यकर्ताओं, मज़दूर आन्दोलन से जुड़ाव एवं हमदर्दी रखने वाले बुद्धिजीवियों और नागरिकों को इस संगोष्ठी में भाग लेने के लिए गर्मजोशी एवं हार्दिक आग्रह के साथ आमंत्रित करते हैं। हमें विश्वास है कि आन्दोलन की मौजूदा चुनौतियों पर हम जीवन्त और उपयोगी चर्चा करेंगे।

स्‍थान: गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान सभागार, नई दिल्ली
सुबह 11 बजे से शाम 7.30 बजे तक
आयोजक: राहुल फ़ाउण्‍डेशन


7.13.2009

दिल्‍ली मेट्रो- एक और हादसा, पांच घायल

दिल्‍ली मेट्रो के निर्माण के दौरान कल एक हादसा हुए चौबीस घंटे ही गुज़रे होंगे की आज उसी स्‍थान पर एक और हादसा हो गया।
कल हुए हादसे में पांच लोगों की मौत के बाद दिल्‍लीवासियों में मेट्रो को लेकर जो डर था, वह कम नहीं हुआ था कि कल के हादसे के बाद का मलबा हटाते हुए आज एक और लांचर क्रेन पर गिर गया। इस दुर्घटना में पांच लोगों के घायल होने का समाचार है। राहत की बात है कि इसमें किसी की जान नहीं गयी। इधर केंद्रीय मंत्री रेड्डी ने गैमन इंडिया पर बैन लगाने की संभावना का बयान दिया है। लेकिन फिर मेट्रो प्रशासन को कटघरे में खड़ा नहीं किया गया। श्रम कानूनों के मुताबिक और खुद मेट्रो प्रशासन के अनुसार कानूनों के पालन और सुरक्षा की मुख्‍य जिम्‍मेदारी प्रथम नियोक्‍ता और मेट्रो की है। पता नहीं यह श्रीधरन साहब की छवि या रसूख है या कुछ और...जो बार-बार मेट्रो प्रशासन को किसी भी कटघरे में खड़ा नहीं होने दे रहा है।
मेट्रो के कर्मचारियों, निर्माण मजदूरों को बुनियारी अधिकार तक नहीं मिल रहे हैं, लेकिन इस पर कोई सवाल नहीं उठा रहा है। यह चिंता की बात है।

7.12.2009

उपलब्धियां हो तो श्रीधरन साहब की, वरना ठेकेदार कंपनी जिम्मेदार

अच्छा-अच्छा हमारा, और बुरा हो तो...। श्रीधरन साहब! गड़बड़ भी होगी तो मेट्रो प्रशासन और आप ही मुख्य तौर पर जिम्मे्दार होंगे।
जी हां, दिल्ली् मेट्रो में हादसे के बाद बयानबाजियां और श्रीधरन जी के इस्तीफे की नौटंकी (जिसे उम्मीद के अनुसार शीला दीक्षित ने नामंजूर कर दिया है) के बीच असली मुद्दा दब-सा गया। अभी तक दिल्ली मेट्रो के निर्माण या मेट्रो प्रचालन और परिसर में जितनी दुर्घटनाएं हुई हैं, उनके लिए निर्माण कंपनी, घायल व्‍यक्ति आदि को ही जिम्मे्दार ठहराया गया। आज भी श्रीधरन साहब ने ''नैतिक'' जिम्मेदारी तो ली, लेकिन साफ शब्दों में यह नहीं कहा कि अब तक हुई सभी दुर्घटनाओं की मुख्य जिम्मेदारी मेट्रो प्रशासन की है। यहां तक कि मेट्रो के प्रवक्ता और दिल्ली की मुख्यमंत्री तक ने सारी जिम्मेदारी गैमन इंडिया नाम की कंपनी पर डाल दी। लेकिन इस दुर्घटना सहित अब तक मेट्रो संबधी सभी दुर्घटनाओं और मौतों का मुख्य जिम्मेदार मेट्रो प्रशासन है।
श्रम कानूनों के अनुसार मज़दूरों, कर्मचारियों की सुरक्षा के साथ ही श्रम कानूनों के अमल की जिम्मेदारी भी प्रथम नियोक्ता की होती है, जो इस स्थिति में मेट्रो प्रशासन है। मेट्रों के कर्मचारियों के एक संगठन 'दिल्लीं मेट्रो कामगार संघर्ष समिति' ने आरटीआई दाखिल करके इस बारे में जानकारी मांगी तो मेट्रो प्रशासन ने स्वीकार किया कि मुख्य जिम्मेदारी मेट्रो प्रशासन की ही बनेगी। भले ही कर्मचारियों, मजदूरों की भर्ती ठेका कंपनी के जरिए हुई हो। ऐसे में इस घटना की जिम्मेदारी का पता लगाने के लिए जांच कमेटी बिठाने से पहले श्रीधरन साहब को स्पष्ट शब्दों में कहना चाहिए था कि इस घटना का जिम्मेदार मेट्रो प्रशासन है, जो उन्होंने नहीं कहा।
यही नहीं, इस घटना में भी जो मौत हुई हैं, उनकी मुख्य वजह सिर में लगी चोट रही। यदि मजदूरों को इंडस्ट्रियल हैलमेट दिए जाते तो मौत की संभावना कम होती। फिलहाल उन्हें जो टोपीनुमा चीज दी गई उस पर एक ईंट भी गिर जाये तो टूट जाएगी तो वह पिलर का वजन कैसे सह सकती थीं।
घटना के बाद श्रीधरन साहब ने जो प्रेसवार्ता बुलायी और उसमें अपने अनुभव का पूरा फायदा उठाते हुए 'इस्तीफा' नाम का तुरुप का पत्ता फेंक दिया। चिंता की बात यह है कि जो मीडिया उन्हें घेरने के लिए तैयार दिख रहा था, वह द्रवित हो उठा और कई पत्रकारों ने यहां तक कह डाला कि श्रीधरन साहब पूरा देश आपकी ओर उम्मीद से देख रहा है, कॉमनवेल्थ गेम होने वाले हैं, आप इस्तीफा क्यों दे रहे हैं।... और इस सब में दुर्घटना की जिम्मेदारी और उसके कारणों पर सवाल ही नहीं उठा, एक आध सवाल आए भी तो दबे से स्वर में। यानी मीडिया को भी श्रीधरन साहब ने बना ही दिया और असल मुद्दा गुम हो गया इस्तीफे के शोर में।