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5.12.2011

मीडिया के अपने मित्रों का आभार और चंद बातें

मीडिया के अपने मित्रों का आभार और चंद बातें


प्रिय मित्रो,

पिछले 3 मई को गोरखपुर में अंकुर उद्योग के मालिक द्वारा मजदूरों पर गोलियां चलवाने और उसके बाद से मजदूर आंदोलन के दमन के सिलसिले में आपसे ख़तो-किताबत तथा बातचीत होती रही है। हमारी ओर से भेजी गई ईमेल आदि तथा अपने स्रोतों से आपको मालूम ही होगा कि मज़दूरों की एकता तथा देशभर में हुई निंदा और चौतरफा दबाव के बाद 9 तारीख़ की रात को गोरखपुर का प्रशासन व अंकुर उद्योग का मालिक झुकने को मजबूर हो गए। फिलहाल अंकुर उद्योग के मालिक ने कुछ मांगें मानी हैं और 18 मजदूरों को काम पर वापस रखा है तथा फैक्‍ट्री चालू हो गई है।

हालांकि अब भी वी.एन. डायर्स के दो कारखानों में तालाबंदी जारी है, सत्तर-अस्‍सी गुण्‍डों को लेकर मजदूरों पर गोलियां चलाने वाला प्रदीप सिंह अभी तक पकड़ा नहीं गया और ना ही मजदूरों पर से फर्जी मुकदमे वापस लिए गए हैं,न घायल मज़दूरों को मुआवज़ा घोषित हुआ है, न इस बर्बर गोलीकांड के लिए मालिक पर कोई कार्रवाई हुई है और न ही न्‍यायिक जांच के आदेश दिए गए हैं। फिर भी, दमन-उत्‍पीड़न से मज़दूरों को राहत मिली है और मालिकान तथा प्रशासन पीछे हटने पर बाध्‍य हुए हैं, आगे के लिए बातचीत करने पर भी राजी होना पड़ा है।
निश्चित ही, इसके लिए मुख्‍य रूप से बधाई के पात्र गोरखपुर के मजदूर ही हैं जिन्‍होंने दमन का डटकर मुकाबला किया; लेकिन देशभर में हुई निंदा तथा जनदबाव का और मीडिया के आप सभी साथियों के सहयोग और समर्थन का इसमें बहुत बड़ा योगदान है। इसके लिए मैं 'गोरखपुर मजदूर आंदोलन समर्थक नागरिक मोर्चा' की ओर से मीडिया के सभी साथियों का आभार प्रकट करना चाहता हूं (दो वर्ष पहले गोरखपुर के मज़दूर आंदोलन के दमन के समय गठित इस मोर्चे में मैं शामिल रहा हूं)।
मैं लंबे समय तक देश के कई प्रतिष्ठित हिंदी अखबारों से जुड़ा रहा हूं और पिछले तीन साल से स्‍वतंत्र रूप से पत्रकारिता कर रहा हूं। मुझे इस बात का अहसास है कि तमाम ''दबावों'' के बावजूद मीडिया के साथियों ने जिस तरह इस पूरे मामले को अपने पत्र-पत्रिका/चैनल में स्‍थान दिया, वह काफी चुनौतीपूर्ण रहा होगा। चौतरफा निंदा और मीडिया की खबरों से गोरखपुर के मालिकान-प्रशासन पर जो दबाव बना है उसमें आप सभी का योगदान सराहनीय है।
लेकिन, मैं एक बात की ओर ध्‍यान दिलाना चाहूंगा। दो साल पहले भी गोरखपुर में मजदूरों का आंदोलन चला था। उस समय भी जनदबाव और मीडियाकर्मियों के सहयोग के कारण मालिकान-प्रशासन-राजनेता गठजोड़ को झुकना पड़ा था। लेकिन उस समय तीन-चार बार किए गए समझौते आज तक लागू नहीं हुए। अगुआ मजदूरों को चुन-चुन कर प्रताड़ि‍त किया गया तथा समय बीतने के साथ झूठे आरोप लगाकर एक-एक करके उन्‍हें निकाल बाहर किया। और इस बार भी मालिक-प्रशासन ऐसा ही कर सकते हैं। हालत यह है कि चुपचाप सबकुछ सहकर काम करो, तो आप शांत, आज्ञाकारी, मेहनती, विकास को बढ़ावा देने वाले आदि-आदि हैं, वरना आप उकसावेबाज, माओवादी, नक्‍सलवादी करार दिए जाएंगे (वैसे हम मीडियाकर्मियों की स्थिति भी बहुत अच्‍छी नहीं है, और इस बात को आपसे बेहतर कौन जानता होगा?)। उस समय भाजपा के स्‍थानीय सांसद आदित्‍यनाथ ने लगातार मजदूरों और उनके नेताओं के खिलाफ जहर उगला था और पहले तो इसे सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास किया तथा मजदूरों को कामचोर तक कहा। बाद में, थू-थू होने पर उन्‍होंने मजदूरों के नेताओं को निशाना बनाया और अखबारों में बयान जारी करके उन पर नक्‍सलवादी-माओवादी-बाहरी तत्‍व आदि का लेबल चस्‍पां करने लगे। प्रशासन भी मालिकों के सुर में सुर मिलाता रहा। (अभी मोहल्‍ला लाइव पर इस आंदोलन की खबर पर गौरव सोलंकी ने टिप्‍पणी की है कि ''मुझे एक बात याद आई। तहलका में जब मैंने गोरखपुर के मजदूरों की स्टोरी की थी पिछले साल, तब वहाँ के डिप्टी लेबर कमिश्नर को फ़ोन किया था उनकी राय जानने के लिए। उन्होंने कहा कि आपको जो करना है, कर लो। जहाँ श्रम विभाग के अधिकारी ही डॉन के लहजे में बात करते हैं, वहाँ स्थितियाँ कितनी भयावह हो सकती हैं, आप सोचिए।'') मज़दूर नेताओं को बातचीत के बहाने बुलाने के बाद मारा-पीटा गया और फर्जी मुकदमे तक दायर कर दिए। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार उनका एनकाउंटर तक करने की कोशिश की गई। लेकिन उस समय भी जनदबाव और मीडिया में मौजूद साथियों की तत्‍परता के कारण वे इस घृणित कार्य को अंजाम नहीं दे सके।

5.11.2011

मजदूरों पर हमले के खिलाफ आमरण अनशन का एलान

81 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्ता कमला पांडेय ने मायावती को लिखी चिट्ठी

प्रति,
सुश्री मायावती जी,
मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश


विषय : गोरखपुर के मजदूरों के बर्बर दमन की अविलंब निष्पक्ष जांच की मांग तथा ऐसा न होने की स्थिति में आमरण अनशन की पूर्व सूचना



प्रिय मायावती जी,

मैं,कमला पांडेय, आयु 81 वर्ष, साठ वर्षों से गरीबों-मजलूमों के लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ती रही हूं और उप्र माध्यमिक शिक्षक संघ की स्‍थापना के समय से ही उसमें सक्रिय रही हूं। अब जीवन की सांध्य बेला में, हृदय रोग और शारीरिक अशक्तता के बावजूद अपनी सामाजिक सक्रियता जारी रखते हुए मैं बच्चों की संस्था ‘अनुराग ट्रस्ट’ चलाती हूं।

महोदया, गोरखपुर के मजदूरों पर पिछले दो हफ्तों से पुलिस-प्रशासन और उद्योगपतियों के गुंडों का जो बर्बर आतंकराज जारी है, उसकी खबरें मुझे विचलित करती रही हैं। फर्जी मुकदमे, गिरफ्तारी, लाठीचार्ज आदि की कार्रवाई तो अप्रैल से ही जारी है। 3 मई को ‘अंकुर उद्योग’ के मालिकों के गुंडों द्वारा अंधाधुंध गोलीवर्षा में 19 मजदूर जख्मी हुए, जिनमें से एक अभी भी जीवन-मृत्यु के बीच झूल रहा है। आपके पुलिस प्रशासन ने गिरफ्तारी का बहाना बनाकर गुंडों को फैक्ट्री परिसर से बाहर निकालने का और मजदूर नेताओं पर नये फर्जी मुकदमे ठोंकने का काम किया। गोरखपुर के कमिश्नर वहां के भाजपा सांसद के सुर में सुर मिलाते हुए मजदूर नेताओं को ”बाहरी तत्व” और ”उग्रवादी” तक की संज्ञा दे रहे हैं। इन कर्मठ युवा नेताओं को मैं जानती हूं। ये मजदूर हितों के लिए संघर्षरत न्यायनिष्ठ लोग हैं।

महोदया, आज 9 मई को हजारों मजदूर दो फैक्ट्रियों की अवैध तालाबंदी समाप्त करने, मजदूरों से फर्जी मुकदमे हटाने और मजदूरों पर गोली चलाने की घटना की निष्पक्ष जांच और दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई की मांग को लेकर जब कमिश्नर कार्यालय की ओर शांतिपूर्ण ‘मजदूर सत्याग्रह’ शुरू करने जा रहे थे, तो उन पर बर्बर लाठीचार्ज और पानी की बौछार की गयी। शहर में कहीं भी उन्हें इकट्ठा होने से रोकने के लिए पुलिस ने आतंक राज कायम कर दिया। कई नेताओं, मजदूरों को हिरासत में ले लिया गया। इसके बावजूद, शाम 4 बजे मुझे सूचना मिलने तक कई सौ मजदूर टाउन हॉल, गांधी प्रतिमा के पास पहुंचकर अनशन की शुरुआत कर चुके थे।

मायावती जी, मजदूरों पर दमन का यह सिलसिला तो वास्तव में पिछले दो वर्षों से जारी है, जबसे वे कम से कम कुछ श्रम कानूनों को लागू करने की मांग कर रहे हैं।
आप स्वयं पता कीजिए कि गोरखपुर के कारखानों में क्या कोई भी श्रम कानून लागू होता है? यदि इनकी मांग उठाने वाले ”उग्रवादी” हैं तो मैं भी स्वयं को गर्व से ”उग्रवादी” कहना चाहूंगी। इस बार दमन और अत्याचार तो सारी सीमाओं को लांघ गया है। सत्ता में बैठे लोगों को यदि जनता निरीह भेड़-बकरी दीखने लगती है और इंसाफ की आवाज उनके कानों तक पहुंचती ही नहीं, तो इतिहास उन्हें कड़ा सबक सिखाता है।

मायावती जी, मैं विनम्रतापूर्वक आपको सूचित करना चाहती हूं कि यदि गोरखपुर के मजदूरों पर बर्बर अत्याचार बंद नहीं किया जाएगा, यदि मजदूरों पर गुंडों द्वारा गोली वर्षा के मामले की निष्पक्ष जांच नहीं होगी, यदि अवैध तालाबंदी खत्म करने के लिए प्रशासन मालिकों को बाध्य नहीं करेगा और यदि मजदूरों की

न्यायसंगत मांगों पर विचार नहीं किया जाएगा, तो मैं स्वयं व्हीलचेयर पर बैठकर मजदूर सत्याग्रह में हिस्सा लेने जाऊंगी। किसी लोकतांत्रिक, शांतिपूर्ण प्रतिरोध के लिए शासन से इजाजत लेना मैं जरूरी नहीं समझती। यदि न्याय की आवाज की अनसुनी की जाती रहेगी, तो आमरण अनशन करके प्राण त्यागना मेरे लिए गौरव की बात होगी। मुझे विश्वास है कि मेरे इस बलिदान से मजदूरों के संघर्ष को शक्ति मिलेगी और लोकतांत्रिक अधिकारों के संघर्ष में उतरने के लिए तथा न्याय की लड़ाई में शोषितों-दलितों का साथ देने के लिए बुद्धिजीवी समुदाय के अंतर्विवेक को भी झकझोरा जा सकेगा।


मायावती जी, मैं आपको धमकी या चेतावनी नहीं दे रही हूं। सत्ता की प्रचंड शक्ति के आगे मुझे जैसे किसी नागरिक की भला क्या बिसात? मैं आपसे अनुरोध कर रही हूं कि आप अपने स्तर से मामले की जांच कराकर न्याय कीजिए और सत्ता मद में चूर अपने निरंकुश अफसरों की नकेल कसिए। मैं इस न्याय संघर्ष में भागीदारी के अपने संकल्प की आपको सूचना दे रही हूं और विनम्रतापूर्वक बस यह याद दिलाना चाहती हूं कि लाठियों-बंदूकों से सच्चाई और इंसाफ की आवाज कुछ देर को चुप करायी जा सकती है, लेकिन हमेशा के लिए कुचली नहीं जा सकती।

साभिवादन,

भवदीया,
कमला पांडेय

दिनांक : 9/10/2011
संपर्क : डी 68, निरालानगर, लखनऊ 226020

गोरखपुर मजदूर गोलीकांड के विरोध में तैयार की गयी ऑनलाइन पिटिशन। कृपया आप भी हस्‍ताक्षर करें...


5.03.2011

गोरखपुर में फैक्‍ट्री मज़दूरों पर हमला - 20 मज़दूर गंभीर रूप से घायल

कृपया तुरंत कार्रवाई करें / बड़े पैमाने पर वितरित करें ...

गोरखपुर में फैक्‍ट्री मज़दूरों पर हमला - 20 मज़दूर गंभीर रूप से घायल

गोरखपुर (उ.प्र.) के बरगदवा औद्योगिक क्षेत्र की अंकुर उद्योग लि. नामक फैक्‍ट्री के मालिक द्वारा बुलाए गए गुण्‍डों ने आज (3 मई) सुबह मज़दूरों पर हमला किया। गुण्‍डों द्वारा की गई गोलीबारी से कम से कम 20 मज़दूर गम्‍भीर रूप से घायल हो गये हैं जिन्‍हें जिला अस्‍पताल में भरती कराया गया है। 

मज़दूरों ने फैक्‍ट्री को घेर रखा है ताकि गुण्‍डे निकल कर भाग न सकें। पुलिस बल घटनास्‍थल पर पहुंच गया है और फैक्‍ट्री गेट पर मौजूद है लेकिन उसने अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की है। उन्‍होंने अब तक प्राथमिकी भी नहीं दर्ज की है। अब तक 17 घायल मज़दूरों को ज़िला अस्‍पताल में भर्ती कराया गया है। उनके नाम हैं: 1. विनोद सिंह पुत्र श्री रामसरूप सिंह; 2. विरेन्‍द्र यादव पुत्र श्री मतिलाल यादव; 3. इन्‍द्रदेव पुत्र श्री बिलास दास; 4. अमित कुमार पुत्र श्री भूरे; 5. रमानन्‍द साहनी पुत्र श्री शीतला प्रसाद; 6. शैलेष कुमार पुत्र श्री रामाश्रय और 7. पप्पू जायसवाल, 8.रामजन्‍म भारत पुत्र श्री गुल्‍लू भारती, 9. विनय श्रीवास्‍तव पुत्र श्री तेज नारायण, 10. देवेंद्र यादव पुत्र श्री विजय नाथ, 11. विनोद दुबे पुत्र श्री केदारनाथ, 12. ध्रुव सिंह पुत्र श्री रामरूप सिंह, 13. श्रीनिवास चौहान पुत्र श्री बच्‍चा चौहान 14. संदीप मेहता पुत्र श्री बाबूलाल सिंह 15. राजेश गुप्‍ता पुत्र श्री लक्ष्‍मीकांत गुप्‍ता, 16. कृष्‍णकुमार पुत्र श्री रामकिशोर,17. शिवकुमार पुत्र श्री गिरजा राय.

साफ तौर पर यह उद्योगपतियों की तरफ से एक सुनियोजित हमला है। कुछ दिन पहले से ही मीडिया में एक दुष्‍प्रचार अभियान शुरू किया गया था जिसमें कहा गया था कि अपने बुनियादी अधिकारों के लिए संघर्षरत मज़दूरों को बाहर से आये ''माओवादियों'' द्वारा भड़काया गया है। याद रहे कि दो साल पहले जब बरगदवा की 7 फैक्ट्रियों के मज़दूरों ने अपनी मांगों को लेकर एक संगठित आन्‍दोलन शुरू किया था उस समय भी इस प्रकार की अफवाहें फैलाने की कोशिश की गई थी। गोरखपुर के भाजपा सांसद योगी आदित्‍यनाथ फैक्‍ट्री मालिकों का खुले तौर पर समर्थन कर रहे हैं। वे शुरू से ही मज़दूरों के आन्‍दोलन का विरोध करते हुए मज़दूर नेताओं को ''हिंसा भड़काने पर तुले माओवादी'' कहते रहे हैं और पूरे मज़दूर आन्‍दोलन को यह कहकर बदनाम करते रहे हैं कि यह आन्‍दोलन ''चर्च के पैसे से चल रहा'' है।

गोरखपुर का प्रशासन खुलेआम फैक्‍ट्री मालिकों का पक्ष ले रहा है। गोरखपुर के कमिश्‍नर ने 5 दिन पहले ही बयान दिया था कि ''मज़दूरों को भड़काने वाले बाहरी तत्‍वों को बख्‍शा नहीं जायेगा और पुलिस उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई करेगी'' यह बयान गीडा (गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण) के फैक्‍ट्री मालिकों की एक बैठक के तत्‍काल बाद आया जिसमें मालिकों ने प्रशासन से ऐसा करने के लिए कहा था। यहां तक कि उन्‍होंने तीन प्रमुख मज़दूर कार्यकर्ताओं तपिश मेंडोला, प्रमोद कुमार और प्रशान्‍त को ''माओवादी'' बताया था और उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई करने को कहा था। इन तीन कार्यकर्ताओं को पहले भी 2009 में फर्जी मामला बनाकर गिरफ्तार किया गया था और उन्‍हें तभी छोड़ा गया था जब गोरखपुर के ज़िला मैजिस्‍ट्रेट के कार्यालय पर आयोजित एक जबरदस्‍त जनप्रतिरोध ने प्रशासन को 4 दिन के लिए लगभग पंगु बना दिया।

उल्‍लेखनीय है कि गोरखपुर के उद्योगपति मज़दूर मांगपत्रक आन्‍दोलन के तहत दिल्‍ली में आयोजित मई दिवस की रैली में भाग लेने से मज़दूरों को रोकने के‍ लिए तरह-तरह के हथकण्‍डे इस्‍तेमाल कर रहे थे। झूठे मामलों में लगभग एक दर्जन मज़दूरों की गिरफ्तारी की गई थी और यहां तक कि वी एन डायर्स लिमिटेड नाम की एक फैक्‍ट्री में ताला बंदी कर दी गई थी। लेकिन मज़दूरों ने बड़ी संख्‍या में मई दिवस की रैली में भाग लेकर मालिकों को करारा जवाब दिया। गोरखपुर से लगभग 2000 मज़दूरों ने मज़दूर मांगपत्रक आन्‍दोलन के तहत मई दिवस की रैली में भाग लिया जिसमें देश के अलग-अलग हिस्‍सों से आये हज़ारों मज़दूरों ने भाग लिया था। इससे फैक्‍ट्री मालिकों और उनके राजनीतिक संरक्षक और भी बौखलाये हुए हैं और वे मज़दूरों को ''सबक़ सिखाने'' की कोशिश कर रहे हैं।

मीडिया के हमारे कुछ शुभचिन्‍तकों ने हमें सचेत किया है कि गोरखपुर का ज़िला प्रशासन मज़दूर नेताओं और अगुवा मज़दूरों को हिंसा की इस घटना में फर्जी ढंग से फंसाने और उन पर गम्‍भीर आरोप लगाकर उन्‍हें परिदृश्‍य से हटा देने की योजना बना रहा है ताकि आन्‍दोलन को कुचला जा सके।

हम आप सबसे अपील करते हैं कि फैक्‍ट्री मालिक और उसके गुण्‍डों को गिरफ्तार करने के लिए राज्‍य और ज़िला प्रशासन पर दबाव डालें और मज़दूर नेताओं को फर्जी मामलों में फंसाने से उन्‍हें रोकें। संबंधित अधिकारियों के फोन/फैक्‍स नंबरों और ईमेल आईडी की एक सूची इस मेल के साथ संलग्‍न है।

सत्‍यम
फोन : 9910462009



Commissioner                                     0551 - 2338817 (Fax)
Office of the Commissioner
Collectrate
Gorakhpur - 273001


Gorakhpur (0551)
Divisional Commissioner
2333076, 2335238 (off)
2336022 (Res)
Fax: 2338817

District Magistrate                               0551 - 2334569 (Fax)
Office of the District Magistrate
Collectrate
Gorakhpur - 273001


City Magistrate: Arun - 9450924888



Dy Inspector General of Police          0551 - 2201187 / 2333442
Cantt.
Gorakhpur:

Dy. Labour Commissioner,
Labour Office
Civil Lines
Gorakhpur-273001

DLC, ML Choudhuri - 9838123667



Governor, BL Joshi
Raj Bhavan, Lucknow, 226001
0522-2220331, 2236992, 2220494
Fax: 0522-2223892
Special Secretary to Governor: 0522-2236113







Km. Mayawati,
Chief Minister
Fifth Floor, Secretariat Annexe
Lucknow-226001
0522 - 2235733, 2239234 (Fax)
2236181  2239296
2215501 (Phone: (Pffice)
2236838 2236985
Phone: (Res)


Shri Badshah Singh :                          0522 - 2238925 (Fax)
Labour Minister, 
Department of Labour
Secretariat
Lucknow

Principal Secretary, Labour                0522 - 2237831 (Fax)
Department of Labour
Secretariat
Lucknow - 226001






District & STD Code
Post
Office
Residence
Fax
Gorakhpur (0551)
Divisional Commissioner
2333076, 2335238
2336022
2338817
Gorakhpur (0551) )
D.M.
2336005
2344544, 2336007
2334569
Gorakhpur (0551)
D.I.G.
2333442
2201100
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10.19.2009

यहाँ सत्य को झुलस रही है संविधान की आँच


एस.ए. हमजा



यह पुस्तक मर चुकी है
इसे न पढ़ें
इसके शब्दों में मौत की ठण्डक है
और एक-एक पृष्ठ
जिन्दगी के आखिरी पल जैसा भयानक है

पंजाब के क्रान्तिकारी कवि ''पाश'' की भारतीय संविधान पर लिखी ये पंक्तियाँ दुनिया का सबसे बड़ा व महान लोकतन्त्र अपनी राज्य मशीनरी द्वारा निर्विवाद रूप में लागू कर रहा है।
भारतीय संविधान चाहे जितने विद्ववतापूर्ण ढंग से लिखा गया हो, उसकी जमीनी हकीकत यह है कि जनता को राज्यसत्ता से अतिसीमित जनवादी अधिकार ही प्राप्त हो रहे हैं। इसके साथ व्यापक आम जनता के लिए संविधान प्रदत्त अधिकारों, कानूनी प्रावधानों और उच्चतम न्यायालय के मानवाधिकारों विषयक दिशा-निर्देशों का कोई खास मतलब नहीं है क्योंकि उनके सभी संविधान प्रदत्त अधिकार तो थाने के दीवानजी की जेब में आकर समा जाते हैं।
क्योंकि व्यवस्था के सामने चुनौती खड़ा करने या थोड़ा-सा खतरा पैदा होने पर भारतीय राज्यसत्ता का चरित्र हमेशा ही दमनकारी तथा स्वयं अपने द्वारा ही बनाए गए कायदे-कानूनों को ताक पर धर देने का होता रहा है। प्रथम आम चुनाव के पहले ही 'तेलंगाना किसान संषर्घ' का बर्बर दमन करके राज्यसत्ता ने अपने वास्तविक चरित्र को उजागर कर दिया था जिसने महान क्रान्तिकारी व विचारक भगतसिंह की इस उक्ति को सही साबित किया कि ''हमें जितनी भी सरकारों के बारे में जानकारी है, वे बल पूर्वक संचालित होती है।''
इसके बाद जनता जहाँ भी अपनी विधि सम्मत न्यायपूर्ण माँगों को लेकर सड़कों पर उतरी वहाँ उसका स्वागत लाठियों व गोलियों की बौछार से किया गया। चाहे वह आपातकाल का विरोध करने वाले लोगों का दमन हो, 1974 की रेल हड़ताल हो या फिर बेलद्दी, बेलाडीला, पन्तनगर, नारायणपुर, शेरपुर, अरवल, स्वदेशी कॉटन मिल कानपुर से लेकर मुजफ्फरनगर और बबराला काण्डों तक सत्ता प्रायोजित नरसंहारो का लम्बा सिलसिला है।
छंटनी-तालाबन्दी को लेकर सड़कों पर उतरने वाले मजदूरों पर बिजली, पानी आदि की दुर्व्‍यवस्था को लेकर आन्दोलित नागरिकों पर तथा रोजगार व सस्ती शिक्षा की माँग कर रहे युवाओं पर लाठियों गोलियों की बरसात आम बात होती है।
इसी कड़ी में एक ताजा उदाहरण है गोरखपुर का मजदूर आन्दोलन। गोरखपुर में चल रहे मजदूर आन्दोलन में उन्हीं विधि सम्मत माँगों को एजेंडे पर रखा गया है जिनको देने का भारतीय संविधान दम भरता है परन्तु सत्ता व पूँजी का गठजोड़ संवैधानिक अधिकारों को ताक पर रखकर मजदूरों व उनके नेताओं पर पुलिसिया कहर बरपाए हुए है।  विगत दो माह से चलने वाले आन्दोलन को कुचलने में पूरा जिला प्रशासन, स्थानीय सांसद व विधायक महोदय काफी दिलचस्पी दिखा रहे हैं तथा उसे (आन्दोलन को) चर्च द्वारा समर्थित व नक्सलवादियों द्वारा संचालित बताया जा रहा है।
पिछले 15 अक्टूबर से गिरफ्तार मजदूर नेताओं को जमानत देने से इंकार करते हुए पुलिस प्रशासन के उच्च अधिकारी उन नेताओं के साथ पुलिसिया शालीनता का परिचय देते हुए उनको बेतहाशा यातनाएँ देने में मशरूफ़ है।
पिछले 2 महीनों से गोरखपुर से लखनऊ तक हर स्तर पर मजदूरों ने अपनी बात पहुँचाई परन्तु सर्वजन हिताय की बात करने वाली सरकार कान में तेल डालकर सो रही है। मानवधिकारों की पैरवी करने वाला मानवाधिकार आयोग, तमाम एन.जी.ओ., कलम घसीट बुद्धिजीवी, असमानता-अन्याय व शोषण की बात करने वाले सामाजिक संगठन खामोश हैं (कुछ अपवादों को छोड़कर)। भारतीय लोकतन्त्र का चैथा स्तम्भ मीडिया जो ऐश्वर्या राय के छींक आने पर खबर को फ्रंट पेज पर छापता है परन्तु इस अन्यायपूर्ण आन्दोलन को छापने व प्रसारित करने की जहमत भी नहीं उठा रहा है तथा ये खबरें गोरखपुर के स्थानीय अखबारों में ही जगह पा रही है। इससे साफ पता चलता है कि सामाजिक शक्तियों की चुप्पी व मीडिया का जनान्दोलन के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैया शासक वर्गों को अपनी स्थिति मजबूत करने का आधार प्रदान कर रहा है।
सन 2000 में तत्कालीन राष्ट्रपति ने गणतन्त्र दिवस के अवसर पर राष्ट्र के नाम अपने सन्देश में कहा था कि लम्बे समय से कष्ट उठा रहे लोगों का धीरज चुक रहा है। उनके गुस्से के विस्फोट से सावधान हो जाएँ। इसीलिए राज्य मशीनरी भी आने वाले जनसंघर्षों से निपटने के लिए व्यापक तैयारी कर रही है। आखिर क्या कारण है कि पिछले एक दशक में यू.पी. पुलिस में ही सबसे ज्यादा भर्तियाँ हुई, अन्य विभागों में क्यों नहीं। अगर तर्क दिया जाए कि अपराधों को रोकने के लिए तो पिछले 10 वर्ष के आंकड़े राज्य में क्राइम की बढ़ोत्तरी का संकेत करते हैं न कि कम होने का।
गोरखपुर आन्दोलन भी उन्हीं जनसंघर्षों की सुगबुगाहट का सन्देश है और गोरखपुर जिला प्रशासन उस पर नक्सलवाद का ठप्पा लगाकर बदनाम करने की कोशिशों में लगा हुआ है क्योंकि आन्दोलन पर एक बार यदि माओवाद की मुहर लग गई तो बाकी सारी चीजों के सन्दर्भ व अर्थ अपने आप बदल जायेंगे। आन्दोलन को माओवादी आन्दोलन साबित करके या उसके नेताओं को माओवादी साबित करने के पीछे एक दृष्टिकोण यह भी है कि बाहरी समुदाय व आन्दोलन के बीच अलगाव की एक मानसिक खाई बन जाए तथा लोग उसे नैतिक समर्थन न दे।

10.17.2009

गरीबों-दलितों की ''मसीहा'' मायावती का आतंकराज, मज़दूर कार्यकर्ताओं पर फर्जी मुकदमे

नक्‍सलवाद के नाम पर पहले भी जनांदलनों को कुचलने और उनके नेताओं को फर्जी मुकदमों में फंसाने की खबरें आती रही हैं, लेकिन अक्‍सर ऐसी खबरें छत्तीसगढ़, झारखंड, महाराष्‍ट्र  आदि से मिलती थीं। अब उत्तर प्रदेश का शासन-प्रशासन भी इसी हथकण्‍डे को अपनाने लगा है। परसों देर रात गोरखपुर में तीन मज़दूर कार्यकर्ताओं को फर्जी आरोप लगाकर गिरफ्तार कर लिया गया। सूत्र बता रहे हैं कि जिस फैक्‍ट्री के मजदूर पिछले लगभग ढाई महीने से आन्‍दोलन कर रहे थे, उसके मालिक की शह पर प्रशासन उस आन्‍दोलन की अगुवाई करने वालों को नक्‍सलवादी घोषित करके उन पर राजद्रोह का मामला दायर करने की तैयारी कर रहा है। इस मामलें में बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और छात्रों-पत्रकारों ने एक अपील जारी की है। आप इस अपील को पढ़ें और  जल्‍द से जल्‍द संबंधित नेताओं-अधिकारियों से अपना विरोध दर्ज़ कराएं। फोन और फैक्‍स नंबर इस अपील के अंत में दिए गए हैं।
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मज़दूर संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों के नाम अपील


मज़दूर आन्दोलन को कुचलने के लिए तीन नेतृत्वकारी युवा कार्यकर्ता झूठे 
आरोपों में गिरफ्तार, 9 मजदूरों पर फर्जी मुकदमे कायम



  • मामूली धाराओं में भी  22 अक्टूबर तक ज़मानत देने से इंकार, हिरासत में पिटाई
  • ''नक्सली'' ''आतंकवादी'' होने का आरोप लगाकर लंबे समय तक बंद रखने की तैयारी
  • मालिकों की शह पर पुलिसिया आतंकराज


पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर में करीब ढाई महीने से चल रहे मज़दूर आन्दोलन को कुचलने के लिए प्रशासन ने फैक्ट्री मालिकों के इशारे पर एकदम नंगा आतंकराज कायम कर दिया है। गिरफ्तारियां, फर्जी मुकदमे, मीडिया के जरिए दुष्प्रचार व धमकियों के जरिए मालिक-प्रशासन-नेताशाही का गंठजोड़ किसी भी कीमत पर इस न्यायपूर्ण आंदोलन को कुचलने पर आमादा है। 15 अक्टूबर की रात संयुक्त मजदूर अधिकार संघर्ष मोर्चा के तीन नेतृत्वकारी कार्यकर्ताओं - प्रशांत, प्रमोद कुमार और तपीश मैंदोला को गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस उन पर शांति भंग जैसी मामूली धाराएं ही लगा पाई लेकिन फिर भी 16 अक्टूबर को सिटी मजिस्ट्रेट ने उन्हें ज़मानत देने से इंकार करके 22 अक्टूबर तक जेल भेज दिया। इससे पहले 15 अक्टूबर की रात ज़िला प्रशासन ने तीनों नेताओं को बातचीत के लिए एडीएम सिटी के कार्यालय में बुलाया जहां काफी देर तक उन्हें जबरन बैठाये रखा गया और उनके मोबाइल फोन बंद कर दिये गये। उन्हें आन्दोलन से अलग हो जाने के लिए धमकियां दी गईं। इसके बाद उन्हें कैंट थाने ले जाया गया जहां उनके साथ मारपीट की गई। इसके अगले दिन मालिकों की ओर से इन तीन नेताओं के अलावा 9 मजदूरों पर जबरन मिल बंद कराने, धमकियां देने जैसे आरोपों में एकदम झूठा मुकदमा दर्ज कर लिया गया। गिरफ्तारी वाले दिन से ही जिला प्र्रशासन के अफसर ऐसे बयान दे रहे हैं कि इन मजदूर नेताओं को ”माओवादी“ होने की आशंका में गिरफ्तार किया गया है और उनके पास से ”आपत्तिजनक“ साहित्य आदि बरामद किया गया है। उल्लेखनीय है कि गोरखपुर के सांसद की अगुवाई में स्थानीय उद्योगपतियों और प्रशासन की ओर से शुरू से ही आन्दोलन को बदनाम करने के लिए इन नेताओं पर ‘‘नक्सली’’ और ‘‘बाहरी’’ होने का आरोप लगाया जा रहा है। कुछ अफसरों ने स्थानीय पत्रकारों को बताया है कि पुलिस इन नेताओं को लंबे समय तक अंदर रखने के लिए मामला तैयार कर रही है।
इससे पहले 15 अक्टूबर को जिलाधिकारी कार्यालय में अनशन और धरने पर बैठे मजदूरों पर हमला बोलकर उन्हें वहां से हटा दिया गया। महिला मजदूरों को घसीट-घसीटकर वहां से हटाया गया। प्रशांत, प्रमोद एवं तपीश को ले जाने का विरोध कर रही महिलाओं के साथ मारपीट की गई। ये मजदूर स्वयं प्रशासन द्वारा पिछले 24 सितम्बर को कराये गये समझौते को लागू कराने की मांग पिछले कई दिनों से प्रशासन से कर रहे थे। 3 अगस्त से जारी आन्दोलन के पक्ष में जबर्दस्त जनदबाव के चलते प्रशासन ने समझौता कराया था लेकिन मिलमालिकों ने उसे लागू ही नहीं किया। समझौते के बाद दो सप्ताह से अधिक समय बीत जाने के बावजूद आधे से अधिक मजदूरों को काम पर नहीं लिया गया है। थक हारकर 14 अक्टूबर से जब वे डीएम कार्यालय पर अनशन पर बैठे तो प्रशासन पूरी ताकत से उन पर टूट पड़ा। मॉडर्न लेमिनेटर्स लि. और मॉडर्न पैकेजिंग लि. के इन मजदूरों की मांगें बेहद मामूली हैं। वे न्यूनतम मजदूरी, जॉब कार्ड, ईएसआई कार्ड देने जैसे बेहद बुनियादी हक मांग रहे हैं, श्रम कानूनों के महज़ कुछ हिस्सों को लागू करने की मांग कर रहे हैं। बिना किसी सुविधा के 12-12 घंटे, बेहद कम मजदूरी पर, अत्यंत असुरक्षित और असहनीय परिस्थितियों में ये मजदूर आधुनिक गुलामों की तरह से काम करते रहे हैं। गोरखपुर के सभी कारखानों में ऐसे ही हालात हैं। किसी कारखाने में यूनियन नहीं है, संगठित होने की किसी भी कोशिश को फौरन कुचल दिया जाता है। पहली बार करीब पांच महीने पहले तीन कारखानों के मजूदरों ने संयुक्त मजदूर अधिकार संघर्ष मोर्चा बनाकर न्यूनतम मजदूरी देने और काम के घंटे कम करने की लड़ाई लड़ी और आंशिक कामयाबी पायी। इससे बरसों से नारकीय हालात में खट रहे हजारों अन्य मजदूरों को भी हौसला मिला। इसीलिए यह मजदूर आन्दोलन इन दो कारखानों के ही नहीं बल्कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के तमाम उद्योगपतियों को बुरी तरह खटक रहा है और वे हर कीमत पर इसे कुचलकर मजदूरों को ”सबक सिखा देना“ चाहते हैं। कारखाना मालिक पवन बथवाल दबंग कांगे्रसी नेता है और भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ का उसे खुला समर्थन प्राप्त है। प्रशासन और श्रम विभाग के अफसर बिके हुए हैं। शहर में आम चर्चा है कि मालिकों ने अफसरों को खरीदने के लिए दोनों हाथों से पैसा लुटाया है। मजदूरों ने पिछले दो महीनों के दौरान गोरखपुर से लेकर लखनऊ तक, हर स्तर पर बार-बार अपनी बात पहुंचायी है लेकिन ”सर्वजन हिताय“ की बात करने वाली सरकार कान में तेल डालकर सो रही है। मजदूरों और नेतृत्व के लोगों को डराने-धमकाने, फोड़ने की हर कोशिश नाकाम हो जाने के बाद पिछले महीने से यह सुनियोजित मुहिम छेड़ दी गई कि इस आन्दोलन को ‘‘माओवादी आंतकवादी’’ और ‘‘बाहरी तत्व’’ चला रहे हैं और यह ”पूर्वी उत्तर प्रदेश को अस्थिर करने की साज़िश“ है। इससे बड़ा झूठ कोई नहीं हो सकता।
संघर्ष मोर्चा में सक्रिय ये तीनों ही कार्यकर्ता जनसंगठनों से लंबे समय से जुड़कर काम करते रहे हैं। प्रशांत और प्रमोद विगत कई वर्षों से गोरखपुर के छात्रों और नौजवानों के बीच सामाजिक काम करते रहे हैं। पिछले वर्ष ‘गीडा’ के एक कारखाने के मज़दूरों तथा नगर महापालिका और विश्वविद्यालय के सफाई कर्मचारियों के आन्दोलनों में भी उनकी सक्रियता थी। शहर के अधिकांश प्रबुद्ध नागरिक और मज़दूर उन्हें जानते हैं। तपीश मैंदोला मज़दूर अखबार ‘बिगुल’ से जुड़े हैं और श्रम मामलों के विशेषज्ञ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। कई वर्षों से वे नोएडा, गाज़ियाबाद के सफाई मज़दूरों और फैक्ट्री मज़दूरों के बीच काम करते रहे हैं। इन दिनों उनके नेतृत्व में मऊ, मैनपुरी और इलाहाबाद में नरेगा के मज़दूर अपनी माँगों को लेकर संगठित हो रहे हैं। तपीश के नेतृत्व में दिल्ली और आसपास से मज़दूरों के खोये हुए बच्चों के बारे में प्रस्तुत बहुचर्चित रिपोर्ट पर इन दिनों दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है। ये तीनों साथी जन-आधारित राजनीति के पक्षधर हैं और आतंकवाद की राजनीति के विरोधी हैं। किसी भी जनान्दोलन को ‘‘माओवाद’’ का ठप्पा लगाकर कुचलने के नये सरकारी हथकंडे का यह एक नंगा उदाहरण है। इसका पुरज़ोर विरोध किया जाना बेहद ज़रूरी है। यह तमाम इंसाफ़पसंद नागरिकों, बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, छात्र-युवा कार्यकर्ताओं को सत्ता की सीधी चुनौती है! हमारी आपसे अपील है कि हर संभव तरीके से अपना विरोध दर्ज कराए। 
आप क्या कर सकते हैं - मज़दूर आन्दोलन के दमन और मजदूर नेताओं की गिरफ्तारी के विरोध में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री, प्रमुख सचिव, श्रम और श्रम मंत्री को, तथा गोरखुपर के जिलाधिकारी को फैक्स, ईमेल या स्पीडपोस्ट से विरोधपत्र भेजें। ईमेल की एक प्रति कृपया हमें भी फारवर्ड कर दें। - इस मुद्दे पर बैठकें तथा धरना-विरोध प्रदर्शन आयोजित करें। - अपने संगठनों की ओर से अपनी ओर से इसके विरोध में बयान जारी करें और हस्ताक्षर अभियान चलाकर उपरोक्त पतों पर भेजें। - दिल्ली में 21 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश भवन पर आयोजित विरोध प्रदर्शन में शामिल हों।

गोरखपुर के मजदूर आन्दोलन के समर्थक बुद्धिजीवियों, आम नागरिकों, छात्रों-युवाओं की ओर से,
कात्यायनी, सत्यम, मीनाक्षी, रामबाबू, कमला पाण्डेय, संदीप, संजीव माथुर, जयपुष्प, कपिल स्वामी, अभिनव, सुखविन्दर, डा. दूधनाथ, शिवार्थ पाण्डेय, अजय स्वामी, शिवानी कौल, लता, श्वेता, नेहा, लखविन्दर, राजविन्दर, आशीष, योगेश स्वामी, नमिता, विमला सक्करवाल, चारुचन्द्र पाठक, रूपेश राय, जनार्दन, समीक्षा, राजेन्द्र पासवान...




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