खैर मैंने पहले अपने ब्लॉग पर उनके बारे में छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के दो पर्चे प्रस्तुत किए थे....आज नागार्जुन की एक कविता यहां देने का मन कर रहा है....कविता पढ़िए आप खुद ही समझ जाएंगे मैं क्या कहना चाहता हूं, और बाबा नागार्जुन क्या कहना चाहते थे....
हिटलर के तम्बू में
अब तक छिपे हुए थे उनके दांत और नाखून
संस्कृति की भट्ठी में कच्चा गोश्त रहे थे भून।
छांट रहे थे अब तक बस वे बड़े-बड़े कानून।
नहीं किसी को दिखता था दूधिया वस्त्र पर खून।
अब तक छिपे हुए थे उनके दांत और नाखून।
संस्कृति की भट्ठी में कच्चा गोश्त रहे थे भून।
मायावी हैं, बड़े घाघ हैं,उन्हें न समझो मंद।
तक्षक ने सिखलाये उनको 'सर्प-ऩृत्य' के छंद।
अजी, समझ लो उनका अपना नेता था जयचंद।
हिटलर के तम्बू में अब वे लगा रहे पैबन्द।
मायावी हैं, बड़े घाघ हैं, उन्हें न समझो मंद।
यहां उदयप्रकाश की कविता 'तानाशाह' भी एक बार फिर पढ़ ली जाए...
तानाशाह
वह अभी तक सोचता है
कि तानाशाह बिल्कुल वैसा ही या
फिर उससे मिलता-जुलता ही होगा
यानी मूंछ तितलीकट, नाक के नीचे
बिल्ले-तमगे और
भीड़ को सम्मोहित करने की वाकपटुता
जबकि अब होगा यह
कि वह पहले जैसा तो होगा नहीं
अगर उसने दुबारा पुरानी शक्ल और पुराने कपड़े में
आने की कोशिश की तो
वह मसखरा ही साबित होगा
भरी हो उसके दिल में कितनी ही घृणा
दिमाग में कितने ही खतरनाक इरादे
कोई भी तानाशाह ऐसा तो होता नहीं
कि वह तुरन्त पहचान लिया जाये
कि लोग फजीहत कर डालें उसकी
चिढ़ाएं, छुछुआएं
यहां तक कि मौके-बेमौके बच्चे तक पीट डालें
अब तो वह आयेगा तो उसे पहचानना भी मुश्किल होगा
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9 comments:
सुन्दर प्रस्तुति ....
बढ़िया प्रस्तुति।आभार।
कविताओं के जरिये आपने बहुत कुछ कह डाला....
फिर भी रिश्ते न जोड़ते हुए, हमने मूल कविताओं का निर्मल आनंद लिया।
बाबा की कविता पुन: यहाँ पढकर अच्छा लगा ।
सप्रसंग दोनों कविताओं ने नया आलोक दिया....
माओवाद की जय लगाने का अच्छा जरिया है ।
फ़ासीवाद के ख़िलाफ़ हिंदी में ब्लॉग
बहुत ही उम्दा !!पहली बार आया.अब बार-बार होगा आना....
hamzabaan par link de raha hoon
सर आपकी मुहीम काबिले तारीफ़ हैं और इन ब्लोग्स के पीछे की कड़ी तपस्या तो ब्लॉग की सामग्री से पता चलती है आपके इस सफ़र में मेरी शुभकामनाये
pankajsaanidhya.blogspot.com
पंकज "सानिध्य "
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