बर्बरता के विरुद्ध
एक जि़द्दी धुन
अनवरत
समय के साये में
सृजन और सरोकार
बिगुल
3.18.2007
तुम पूछोगे...
तुम पूछोगे
क्यों नहीं करती
उसकी कविता
उसके देश के
फूलों और पेड़ों की बात
आओ देखो
गलियों में बहता लहू
आओ देखो
गलियों में बहता लहू
आओ देखो
गलियों में बहता लहू
*पाब्लो नेरूदा
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