''माओवादियों'' ने अगवा किए इंस्पेक्टर फ्रांसिस की गला काट कर नृशंस हत्या कर दी, और वे इसे संभवत: रेड टेरर का नाम दे रहे होंगे। लेकिन उनकी इस हरकत की जितनी निंदा की जाए वह कम है। क्रांति का मतलब थाने, चौकियां, रेल पटरियां, पुल उड़ाना नहीं होता, न ही एक दो पुलिसवालों की इस तरह हत्या करने को क्रांति कहा जा सकता है। सत्ता दमन करती है तो जनता को जागरूक, गोलबंद और संगठित कीजिए, राजसत्ता के दमन का प्रतिरोध कीजिए, यह नहीं कर सकते तो इस तरह एक दो पुलिसवालों की पाशविक हत्या को क्रांति का नाम मत दीजिए...
एक तरफ यह बिल्कुल सही है कि राज्यसत्ता द्वारा जनता के अधिकारों का हनन किए जाने का मुखर विरोध किया जाना चाहिए, नक्सलवाद के नाम पर या यह लेबल लगाकर होने वाले नागरिक अधिकारों के हनन का प्रतिरोध होना ही चाहिए। जल-जंगल-जमीन से आदिवासियों को बेदखल किया जा रहा है, ये कॉरपोरेट घरानों को दोहन के लिए सौंपे जा रहे हैं, तो बेशक उसका विरोध होना चाहिए। लेकिन दूसरी तरफ इसके विरोध के नाम पर किसी की गर्दन काटने को कत्तई जायज नहीं ठहराया जा सकता। वैसे तो माओवाद के नाम पर जिस चीज को अमल में लाया जा रहा है, वह माओवाद भी नहीं है, उसे सिर्फ और सिर्फ वामपंथी आतंकवाद ही कहा जा सकता है। दरअसल यह मध्यवर्गीय दुस्साहसवाद से पैदा हुई निराशा का नतीजा है। संभवत: इनके लिए जंगल और आदिवासी ही पूरा भारत हैं, और आतंकवादी कार्रवाइयां इनका तरीका है। जनता को जागरूक और गोलबंद करने के दीर्घकालिक और मुश्किल कार्य की जगह क्रान्ति का शोर्टकट केवल आतंकवाद को ही पैदा कर सकता है।
शोर्टकट का रास्ता पकड़ने वाली सोच के ऐसे कामों की वजह से ही जनसंघर्षों के साथ खड़े मानवाधिकार, नागरिक-अधिकारों के लिए लड़ने वाले लोगों पर हमला करने का मौका सत्ताधारियों और उसके हिमायतियों को मिल जाता है। लोगों के अधिकारों पर मुंह न खोलने वाले ये झींगुर भी ऐसी घटनाओं पर आम जन के साथ खड़ी राजनीति और सभी लोगों पर हमला बोल देते हैं। इसलिए जरूरी है कि जनसंघर्षों की वास्तविक राजनीति को इस आतंकवादी राजनीति से अलग करके हर मुद्दे पर (जैसे कि यह घटना) इसकी सोच के साथ सामने लाया जाए ताकि लोग भी सही और गलत राजनीति को पहचान सकें।
3 comments:
एक बढ़िया विश्लेषण...
बगलबार में अपनी कविता भी दिख रही है...
अच्छा लगा...धन्यवाद...
टिप्पणी बक्सा काम नहीं कर रहा था...
इसीलिए सज्जनों को तकलीफ़ हो रही थी..टिपियाने की...
सही कहा आपने। आजकल लोग क्रान्ति के नाम ऐसी ही बर्बर हत्याएं करते हैं और अपने आपको भगत सिंह मनवाना चाहते हैं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
हां, यह बहुत जरूरी कार्यभार है कि आतंकवाद की लाइन की उदाहरण देकर निंदा की जाये और वास्तविक कार्यभारों को स्पष्ट ढंग से पेश किया जाये। यह भी बताया जाना चाहिए कि इन ''माओवदियों'' के कारण राज्यसत्ता को दमन का और जनता के पक्ष में मजबूती से खड़े लोगों को बदनाम करने का किस प्रकार से बहाना मिलता है।
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