वामपंथी भटकावों और संघर्षों की वर्तमान स्थिति के बारे में अमर जी ने एक छोटा व्यंग्यात्मक आलेख भेजा है, इसे यहां हूबहू पोस्ट कर रहा हूं।
11.22.2009
प्रेत की वापसी
6.28.2008
करीम की कै़द के 600 दिन - आप भी करीम का साथ दें !
तिथि : शनिवार, 28 जून
अवसर : करीम की कै़द के 600 दिन पूरे होना !
उद्देश्य : करीम की कै़द के बारे में लोगों को बताना, और उससे संपर्क करना !
आप इसमें किस तरह शामिल हो सकते हैं :
अपने ब्लॉग/वेबसाइट पर 28 तारीख को करीम के बारे में एक पोस्ट लिखें।
आप ऐसा दो तरीकों से कर सकते हैं :
विकल्प 1 : सीधे करीम को संबोधित या उसके बारे में एक पोस्ट/पत्र लिखें। लोगों को बताएं कि करीम किस स्थिति से गुज़र रहा है। इस तथ्य के बारे में अपनी राय या चिंता व्यक्त करें कि वह महज रैडिकल इस्लाम, अल अज़हर में व्याप्त चरमपंथ, और मिस्त्र के राष्ट्रपति के बारे में अपने व्यक्तिगत विचार साझा करने की वजह से अब तक क़ैद में है।
विकल्प 2 : किसी विवादित मामले पर उसी निडरता के साथ लिखिए जैसे करीम ने लिखा (चाहे यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बारे में हो, या मानवाधिकारों, धार्मिक स्वतंत्रता, राजनीतिक अधिकारों के बारे में हो) और वह पोस्ट करीम को समर्पित करें।
आप निम्न पते पर सीधे करीम को भी लिख सकते हैं :
Prisoner Abdul Kareem Nabil Suleiman
Alexandria
Borg Al-Arab Prison
Room 1 Section 22
The Arab Republic of Egypt
कृपया अपने पत्र पर अरबी में लिखा पता भी लगा दें :
11.08.2007
सभी चिट्ठाकार साथियों के नाम
यदि आपने मिस्त्र के ब्लॉगर करीम के बारे में मेरी पिछली पोस्ट पढ़ी होगी तो आपको मामले की जानकारी होगी। (उन्हें मिस्त्र की सरकार ने पिछले साल 9 नवंबर को गिरफ्तार किया था, और अभी तक रिहा नहीं किया है। उनका अपराध था अपने विचार व्यक्त करना।) यदि आपने नहीं पढ़ी है तो एक बार जरूर देख लें। सभी चिट्ठाकार साथियों के नाम मेरा प्रस्ताव है कि 9 नवंबर को एक ही समय (संभत हो तो सुबह 11 बजे, या जो समय ठीक लगे) सभी चिट्ठाकार साथी अपने ब्लॉग में करीम की रिहाई की मांग करते हुए एक पोस्ट लिखें। पोस्ट में करीम की फोटो भी लगाई जा सकती है। जरूरी नहीं कि यह बहुत बड़ी पोस्ट हो। यह केवल प्रतीकात्मक प्रतिरोध होगा। यह तय है कि ब्लॉग जगत की हलचलों को भी अनदेखा नहीं किया जाता है, इसलिए मेरा प्रस्ताव है कि सभी साथ इस पर अमल करें तो बेहतर होगा। मैं एक कविता की पंक्तियों के साथ समाप्त कर रहा हूं :
पहले वे आए
यहूदियों के लिए
और मैं कुछ नहीं बोला
क्योंकि मैं यहूदी नहीं था।
फिर वे आए
कम्युनिस्टों के लिए
और मैं कुछ नहीं बोला
क्योंकि मैं कम्युनिस्ट नहीं था।
फिर वे आए
मजदूरों के लिए
और मैं कुछ नहीं बोला
क्योंकि मैं मज़दूर नहीं था।
फिर वे आए
मेरे लिए
और कोई नहीं बचा था
जो मेरे लिए बोलता।
पास्टर निमोलर
(हिटलर काल के जर्मन कवि)
11.04.2007
अभिव्यक्ति की कीमत चुकाता ब्लॉगर
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमेशा ही हमले होते रहे हैं और यह गैर-जनवादी हरकतें अब भी दुनिया भर में जारी है। पहले प्रेस, रेडियो, टीवी इसका शिकार होते थे, अब संचार-क्रांति के युग में इंटरनेट भी इसके निशाने पर है। और इंटरनेट पर ब्लॉग के बढ़ते कदमों पर भी विचारों की स्वतंत्रता के विरोधियों की तिरछी निगाहें हैं। खैर, सीधे मुद्दे की बात की जाए तो बेहतर होगा। दरअसल, मिस्त्र के एक ब्लॉगर करीम आमिर को पिछले साल वहां की सरकार ने 'इस्लाम विरोधी' और 'सरकार विरोधी' विचार व्यक्त करने पर गिरफ्तार कर लिया था, इस महीने की 9 तारीख को उनकी गिरफ्तारी को पूरे एक साल हो जाएंगे। और इस एक वर्ष में दुनियाभर की मीडिया में मामले की चर्चा के बावजूद उन्हें रिहा नहीं किया गया है। सवाल यह उठता है कि यदि वह धर्म के खिलाफ लिख रहे थे तो सरकार या धार्मिक संगठनों को उनके तर्कों को खारिज करना चाहिए था, गिरफ्तार करना तो लोकतांत्रिक बर्बरता के सिवा कुछ नहीं है। आप जवाब नहीं दे पाए तो कानून का डंडा चला दिया। जबकि सरकार के हाथ में ताकत है, मीडिया पर नियंत्रण है।
खैर, पूरे मामले की जानकारी के लिए हमें घटनाक्रम का ब्यौरा देना होगा, हालांकि यह कुछ साथियों को उबाऊ लग सकता है, लेकिन यह अपरिहार्य है। दरअसल, करीम आमिर नाम के एक युवा और विद्रोही ब्लॉगर लगातार अपने ब्लॉग में वहां की अल-अजहर यूनिवर्सिटी की नीतियों, धार्मिक कट्टरपंथ और सरकार के खिलाफ लिख रहे थे। अब्दुल करीम नबील सुलेमान, जिन्हें ब्लॉगिंग की दुनिया में करीम आमिर के छदद्यनाम से जाना जाता है, मिस्त्र के अलेक्जेंड्रिया के मूल निवासी हैं। एक बेहद धार्मिक परिवार के सदस्य करीम ने जीवन भर अल-अजहर धार्मिक शिक्षा व्यवस्था से शिक्षा ग्रहण की। बाद मैं उन्होंने धार्मिक कट्टरपंथ के बारे में अपने अनुभवों को अपने ब्लॉग के जरिये दुनिया के साथ साझा करना शुरू किया।
2005 में अल-अजहर के प्रबंधन को उनके ब्लॉग के बारे में जानकारी मिली तो उन्हें विश्वविद्यालय से निकाल दिया गया और राज्य अभियोजक को मामला सौंप दिया। मार्च 2006 की शुरुआत में अब्दुल करीम को अल-अजहर विश्वविद्यालय की शरिआ एंड लॉ फेकल्टी के अनुशासन बोर्ड के सामने प्रस्तुत होने को कहा गया। वहां पूछताछ के दौरान उन्हें वे लेख दिखाए गए जो उन्होंने अपने ब्लॉग पर लिखे थे। इनमें उन्होंने र्ध्मनिरपेक्ष विचार व्यक्त किये थे, लैंगिक समानता को बढ़ावा दिया था, और अल अजहर यूनिवर्सिटी की आलोचना की थी। उनके उन लेखों पर आपत्ति की गयी जिनमें उन्होंने धर्मनिरपेक्षता की बात की थी, विश्वविद्यालय की लैंगिक अलगाव की नीति की आलोचना की थी, और अल-अजहर के शेख द्वारा इस्लामिक शोध अकादमी पर राष्ट्रपति मुबारक के प्रति विश्वसनीयता की शपथ लेने का दबाव बनाने से असहमति जताई थी। इस पर करीम का जवाब था कि ये लेख उनक व्यक्तिगत विचारों का प्रतिनियध्त्वि करते है और ये इंटरनेट पर प्रसारित किये थे, न कि कैंपस प्रांगण में, उन्होंने स्वीकार किया कि ये लेख उन्होने ही लिखे थे। पूछताछ के अंत में उन पर निम्न आरोप लगाये गये :
सामान्य तौर पर धर्म और, विशेषत: इस्लाम की अवमानना;
अल-अजहर के प्रमुख शेख,और साथ ही साथ अन्य प्रोफसरों का अपमान; और
निरीश्वरवाद का प्रचार।
कुछ दिनों बाद उन्हें औपचारिक तोर पर विश्वविद्यलाय से निष्कासित कर दिया गया, शरिआ और विधि संकाय के डीन डा. हामिद शाल्बी ने इस जांच के दस्तावेज लोक अभियोजक को सौंप दिये। करीम ने इन घटनाओं की ब्यौरेवार जानकारी अपने ब्लॉग पर दी। करीम को नवंबर 2006 की शुरुआत में अभियोजक कार्यालय में पेश होने का आदेश दिया गया। उनके व्यक्तिगत धार्मिक विश्वासों और वर्तमान राजनीतिक मामलों पर उनकी राय के बारे में पूछताछ की गयी। जब उन्होंने अपने ब्लॉग पर लिखे गये लेखों से मुकरने से इंकार कर दिया तो उन्हें हिरासत में ले लिया गया। उसके बाद दो महीने तक उन पर कोई मामला चलाए बिना ही उन्हें हिरासत में रखा गया और 22 फरवरी, 2007 को करीम ब्लॉग में लिखे लेखों के लिए चार साल कैद की सजा सुनाई गयी : जिसमें से तीन साल 'धर्म की अवमानना' के लिए और एक साल मिस्त्र के राष्ट्रपति की छवि धूमिल करने के लिए थी। मार्च के मध्य में अपील कोर्ट ने उनकी चार वर्ष की सजा को बरकरार रखने का फैसला सुनाया, और जज ने ग्यारह वकीलों द्वारा दायर दीवानी मामले को स्वीकार किया, ये वकील 'इस्लाम के अपमान' के लिए करीमको दंण्ड देना चाहते हैं।
मिस्त्र की सरकार ने उन पर यह आरोप लगाए:
अरैबिक नेटवर्क फॉर ह्यूमन राइट्स इन्फॉरमेशन के अनुसार, करीम पर निम्न मामलों को दोषी ठहराया गया है
1- नागरिक सुरक्षा को नुकसान पहुंचाने वाले आंकड़े और खतरनाक अफवाहों का प्रचार, 2- मिस्त्र के राष्ट्रपति की अवमानना, 3- घृणा और निंदा के जरिये तख्ता पलटके लिए उकसाना,इस्लाम से नफरत के लिए उकसाना और नागरिक शांति के मानकों की अवहेलना, 5- मिस्त्र की छवि को नुकसान पहुचाने वाले पहलुओं को रेखांकित करना और जनता में उन का प्रसार करना।