11.04.2007

अभिव्‍यक्ति की कीमत चुकाता ब्‍लॉगर


चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी

अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता पर हमेशा ही हमले होते रहे हैं और यह गैर-जनवादी हरकतें अब भी दुनिया भर में जारी है। पहले प्रेस, रेडियो, टीवी इसका शिकार होते थे, अब संचार-क्रांति के युग में इंटरनेट भी इसके निशाने पर है। और इंटरनेट पर ब्‍लॉग के बढ़ते कदमों पर भी विचारों की स्‍वतंत्रता के विरोधियों की तिरछी निगाहें हैं। खैर, सीधे मुद्दे की बात की जाए तो बेहतर होगा। दरअसल, मिस्‍त्र के एक ब्‍लॉगर करीम आमिर को पिछले साल वहां की सरकार ने 'इस्‍लाम विरोधी' और 'सरकार विरोधी' विचार व्‍यक्‍त करने पर गिरफ्तार कर लिया था, इस महीने की 9 तारीख को उनकी गिरफ्तारी को पूरे एक साल हो जाएंगे। और इस एक वर्ष में दुनियाभर की मीडिया में मामले की चर्चा के बावजूद उन्‍हें रिहा नहीं किया गया है। सवाल यह उठता है कि यदि वह धर्म के खिलाफ लिख रहे थे तो सरकार या धार्मिक संगठनों को उनके तर्कों को खारिज करना चाहिए था, गिरफ्तार करना तो लोकतांत्रिक बर्बरता के सिवा कुछ नहीं है। आप जवाब नहीं दे पाए तो कानून का डंडा चला दिया। जबकि सरकार के हाथ में ताकत है, मीडिया पर नियंत्रण है।

खैर, पूरे मामले की जानकारी के लिए हमें घटनाक्रम का ब्‍यौरा देना होगा, हालांकि यह कुछ साथियों को उबाऊ लग सकता है, लेकिन यह अपरिहार्य है। दरअसल, करीम आमिर नाम के एक युवा और विद्रोही ब्‍लॉगर लगातार अपने ब्‍लॉग में वहां की अल-अजहर यूनिवर्सिटी की नीतियों, धार्मिक कट्टरपंथ और सरकार के खिलाफ लिख रहे थे। अब्‍दुल करीम नबील सुलेमान, जिन्‍हें ब्‍लॉगिंग की दुनिया में करीम आमिर के छदद्यनाम से जाना जाता है, मिस्‍त्र के अलेक्‍जेंड्रिया के मूल निवासी हैं। एक बेहद धार्मिक परिवार के सदस्‍य करीम ने जीवन भर अल-अजहर धार्मिक शिक्षा व्‍यवस्‍था से शिक्षा ग्रहण की। बाद मैं उन्‍होंने धार्मिक कट्टरपंथ के बारे में अपने अनुभवों को अपने ब्‍लॉग के जरिये दुनिया के साथ साझा करना शुरू किया।

2005 में अल-अजहर के प्रबंधन को उनके ब्‍लॉग के बारे में जानकारी मिली तो उन्‍हें विश्‍वविद्यालय से निकाल दिया गया और राज्‍य अभियोजक को मामला सौंप दिया। मार्च 2006 की शुरुआत में अब्‍दुल करीम को अल-अजहर विश्‍वविद्यालय की शरिआ एंड लॉ फेकल्‍टी के अनुशासन बोर्ड के सामने प्रस्‍तुत होने को कहा गया। वहां पूछताछ के दौरान उन्‍हें वे लेख दिखाए गए जो उन्‍होंने अपने ब्‍लॉग पर लिखे थे। इनमें उन्‍होंने र्ध्‍मनिरपेक्ष विचार व्‍यक्‍त किये थे, लैंगिक समानता को बढ़ावा दिया था, और अल अजहर यूनिवर्सिटी की आलोचना की थी उनके उन लेखों पर आपत्ति की गयी जिनमें उन्‍होंने धर्मनिरपेक्षता की बात की थी, विश्‍वविद्यालय की लैंगिक अलगाव की नीति की आलोचना की थी, और अल-अजहर के शेख द्वारास्‍लामिक शोध अकादमी पर राष्‍ट्रपति मुबारक के प्रति विश्‍वसनीयता की शपथ लेने का दबाव बनाने से असहमति जताई थी। इस पर करीम का जवाब था कि ये लेख उनक व्‍यक्तिगत विचारों का प्रतिनियध्त्वि करते है और ये इंटरनेट पर प्रसारित किये थे, न कि कैंपस प्रांगण में, उन्‍होंने स्‍वीकार किया कि ये लेख उन्‍होने ही लिखे थे। पूछताछ के अंत में उन पर निम्‍न आरोप लगाये गये :

सामान्‍य तौर पर धर्म और, विशेषत: इस्‍लाम की अवमानना;

अल-अजहर के प्रमुख शेख,और साथ ही साथ अन्‍य प्रोफसरों का अपमान; और

निरीश्‍वरवाद का प्रचार।

कुछ दिनों बाद उन्‍हें औपचारिक तोर पर विश्‍वविद्यलाय से निष्‍कासित कर दिया गया, शरिआ और विधि संकाय के डीन डा. हामिद शाल्‍बी ने इस जांच के दस्‍तावेज लोक अभियोजक को सौंप दिये। करीम ने इन घटनाओं की ब्‍यौरेवार जानकारी अपने ब्‍लॉग पर दी। करीम को नवंबर 2006 की शुरुआत में अभियोजक कार्यालय में पेश होने का आदेश दिया गया। उनके व्‍यक्तिगत धार्मिक विश्‍वासों और वर्तमान राजनीतिक मामलों पर उनकी राय के बारे में पूछताछ की गयी। जब उन्‍होंने अपने ब्‍लॉग पर लिखे गये लेखों से मुकरने से इंकार कर दिया तो उन्‍हें हिरासत में ले लिया गया। उसके बाद दो महीने तक उन पर कोई मामला चलाए बिना ही उन्‍हें हिरासत में रखा गया औ 22 फरवरी, 2007 को करीम ब्‍लॉग में लिखे लेखों के लिए चार साल कैद की सजा सुनाई गयी : जिसमें से तीन साल 'धर्म की अवमानना' के लिए और एक साल मिस्‍त्र के राष्‍ट्रपति की छवि धूमिल करने के लिए थी। मार्च के मध्‍य में अपील कोर्ट ने उनकी चार वर्ष की सजा को बरकरार रखने का फैसला सुनाया, और जज ने ग्‍यारह वकीलों द्वारा दायर दीवानी मामले को स्‍वीकार किया, ये वकील 'इस्‍लाम के अपमान' के लिए करीमको दंण्‍ड देना चाहते हैं



मिस्‍त्र की सरकार ने उन पर यह आरोप लगाए:

अरैबिक नेटवर्क फॉर ह्यूमन राइट्स इन्‍फॉरमेशन के अनुसार, करीम पर निम्‍न मामलों को दोषी ठहराया गया है

1- नागरिक सुरक्षा को नुकसान पहुंचाने वाले आंकड़े और खतरनाक अफवाहों का प्रचार, 2- मिस्‍त्र के राष्‍ट्रपति की अवमानना, 3- घृणा और निंदा के जरिये तख्‍ता पलटके लिए उकसाना,इस्‍लाम से नफरत के लिए उकसाना और नागरिक शांति के मानकों की अवहेलना, 5- मिस्‍त्र की छवि को नुकसान पहुचाने वाले पहलुओं को रेखांकित करना और जनता में उन का प्रसार करना।




3 comments:

Anonymous said...

बड़ी दुखद बात है इस तरह की सजा!

Reyaz-ul-haque said...

शुक्रिया भाई

अब यह हमारे लिए भी बहुत दिनों की बात नहीं है. जैसे आसार हैं, भारत में भी जल्दी ही यह सब शुरू होगा.

आपने हमें बता कर अच्छा किया. इसे और व्यापक स्तर पर प्रसारित करना चाहिए और करीम की रिहाई की मांग करनी चाहिए.

...और अपना संघर्ष ज़ारी रखना चाहिए.

Udan Tashtari said...

दुखद है.