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8.11.2009

डीजीपी विश्‍वरंजन द्वारा इतिहास-दहन और सत्‍य भंजन

विश्‍वरंजन को छत्‍तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा का जवाब

छत्तीसगढ़ पुलिस के डीजीपी विश्‍वरंजन यह पद संभालने के बाद से ही मीडिया के कुछ चंपू-चाकर कलमघसीटों की मदद से सलवा जुडूम की दरिंदा मुहिम के पक्ष में और ''माओवादियों'' के बहाने विभिन्‍न जनांदोलनों और जनपक्षधर बुद्धिजीवियों के खिलाफ कुत्‍साप्रचार और झूठ का अभियान छेड़े हुए हैं। अब उन्‍होंने एक नया पैंतरा आज़माते हुए लेखकों-साहित्‍यकारों की गोलबंदी भी शुरू कर दी है। हिंदी के अनेक वरिष्‍ठ साहित्‍यकार पिछले दिनों इनके बुलावे पर प्रमोद वर्मा स्‍मृति समारोह में शिरकत भी कर आए। सबसे पहले युवा आलोचक पंकज चतुर्वेदी ने एक खुला पत्र लिखकर इसका विरोध किया था, फिर आशुतोष कुमार ने जनसत्ता (3 अगस्‍त) की टिप्‍प्‍णी 'यह सांस्‍कृतिक सलवा जुडूम है' में विश्‍वरंजन के पाखंड और झूठ को नंगा किया था, जिसे धीरेश ने अपने ब्‍लॉग पर पोस्‍ट किया था।

इसी सिलसिले में याद आया कि पिछले साल छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा द्वारा विश्‍वरंजन को दिए गए ज़बर्दस्‍त जवाब की प्रति रायपुर के एक पत्रकार मित्र के माध्‍यम से मिली थी। अगस्‍त 2007 में 'छत्तीसगढ़' अखबार में सात किश्‍तों में विश्‍वरंजन का साक्षात्‍कार छपा था जिसमें उन्‍होंने सलवा जुडूम के पक्ष में ढेरों तर्क देने के साथ ही छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा और अन्‍य जनसंगठनों तथा मानवाधिकार व नागरिक अधिकार कर्मियों तक के खिलाफ जमकर झूठ उगला था। छत्तीसगढ़ के कुछ बुद्धिजीवियों ने इसके खिलाफ अखबारों में लेख भी लिखे लेकिन ज़्यादातर इतने पिलपिले थे कि विश्‍वरंजन ने उन्‍हें पटरा कर दिया। 17 मार्च 2008 को नई दुनिया में एक बयान में विश्वरंजन ने फिर से शहीद शंकर गुहा नियोगी के खिलाफ अनर्गल आरोप लगाए। इसके बाद छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा ने एक लंबा लेख लिखकर न केवल विश्‍वरंजन के एक-एक झूठ का पर्दाफ़ाश किया बल्कि बौद्धिकता के आवरण में लिपटे उनके तमाम ख़तरनाक तर्कों का ऐसा करारा जवाब दिया कि उनकी बोलती ही बंद हो गई। बताते हैं कि छ.मु.मो. ने इस लेख की 25-30 हज़ार प्रतियां बंटवाई। कुछ दिन बाद छ.मु.मो. ने विश्‍वरंजन की पोल खोलते हुए एक और पर्चा जारी किया। पत्रकार मित्र के अनुसार ऐसा करारा जवाब पाने की डीजीपी महोदय को उम्‍मीद नहीं थी। उन्‍हें ऐसा सदमा लगा कि कुछ दिन की छुट्टी लेकर दिल्‍ली चले गए।

उन दोनों पर्चों की पीडीएफ फाइलों के लिंक देने के साथ ही दोनों पर्चे इसी पोस्‍ट में नीचे भी दे रहा हूं। पहला पत्र थोड़ा लंबा है लेकिन अपने बॉस की तरफ़ से जयप्रकाश मानस (प्रमोद वर्मा संस्‍थान के सचिव और डीजीपी के भोंपू) ने जो लंबा खर्रा पंकज चतुर्वेदी के जवाब में लिख मारा, और आशुतोष कुमार के जनसत्ता में छपे लेख के जवाब में राम पटवा विश्‍वरंजन और सलवा-जुडूम का बचाव करते हुए जिस टिप्‍पणी में इस हद तक गुजर गए हैं कि पुलिसवालों द्वारा आदिवासी युवतियों के बलात्‍कार को मामूली बताया है, उससे तो छोटा ही है।



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