जी हां, दिल्ली् मेट्रो में हादसे के बाद बयानबाजियां और श्रीधरन जी के इस्तीफे की नौटंकी (जिसे उम्मीद के अनुसार शीला दीक्षित ने नामंजूर कर दिया है) के बीच असली मुद्दा दब-सा गया। अभी तक दिल्ली मेट्रो के निर्माण या मेट्रो प्रचालन और परिसर में जितनी दुर्घटनाएं हुई हैं, उनके लिए निर्माण कंपनी, घायल व्यक्ति आदि को ही जिम्मे्दार ठहराया गया। आज भी श्रीधरन साहब ने ''नैतिक'' जिम्मेदारी तो ली, लेकिन साफ शब्दों में यह नहीं कहा कि अब तक हुई सभी दुर्घटनाओं की मुख्य जिम्मेदारी मेट्रो प्रशासन की है। यहां तक कि मेट्रो के प्रवक्ता और दिल्ली की मुख्यमंत्री तक ने सारी जिम्मेदारी गैमन इंडिया नाम की कंपनी पर डाल दी। लेकिन इस दुर्घटना सहित अब तक मेट्रो संबधी सभी दुर्घटनाओं और मौतों का मुख्य जिम्मेदार मेट्रो प्रशासन है।
श्रम कानूनों के अनुसार मज़दूरों, कर्मचारियों की सुरक्षा के साथ ही श्रम कानूनों के अमल की जिम्मेदारी भी प्रथम नियोक्ता की होती है, जो इस स्थिति में मेट्रो प्रशासन है। मेट्रों के कर्मचारियों के एक संगठन 'दिल्लीं मेट्रो कामगार संघर्ष समिति' ने आरटीआई दाखिल करके इस बारे में जानकारी मांगी तो मेट्रो प्रशासन ने स्वीकार किया कि मुख्य जिम्मेदारी मेट्रो प्रशासन की ही बनेगी। भले ही कर्मचारियों, मजदूरों की भर्ती ठेका कंपनी के जरिए हुई हो। ऐसे में इस घटना की जिम्मेदारी का पता लगाने के लिए जांच कमेटी बिठाने से पहले श्रीधरन साहब को स्पष्ट शब्दों में कहना चाहिए था कि इस घटना का जिम्मेदार मेट्रो प्रशासन है, जो उन्होंने नहीं कहा।यही नहीं, इस घटना में भी जो मौत हुई हैं, उनकी मुख्य वजह सिर में लगी चोट रही। यदि मजदूरों को इंडस्ट्रियल हैलमेट दिए जाते तो मौत की संभावना कम होती। फिलहाल उन्हें जो टोपीनुमा चीज दी गई उस पर एक ईंट भी गिर जाये तो टूट जाएगी तो वह पिलर का वजन कैसे सह सकती थीं।
घटना के बाद श्रीधरन साहब ने जो प्रेसवार्ता बुलायी और उसमें अपने अनुभव का पूरा फायदा उठाते हुए 'इस्तीफा' नाम का तुरुप का पत्ता फेंक दिया। चिंता की बात यह है कि जो मीडिया उन्हें घेरने के लिए तैयार दिख रहा था, वह द्रवित हो उठा और कई पत्रकारों ने यहां तक कह डाला कि श्रीधरन साहब पूरा देश आपकी ओर उम्मीद से देख रहा है, कॉमनवेल्थ गेम होने वाले हैं, आप इस्तीफा क्यों दे रहे हैं।... और इस सब में दुर्घटना की जिम्मेदारी और उसके कारणों पर सवाल ही नहीं उठा, एक आध सवाल आए भी तो दबे से स्वर में। यानी मीडिया को भी श्रीधरन साहब ने बना ही दिया और असल मुद्दा गुम हो गया इस्तीफे के शोर में।