दिल्ली मेट्रो के ठेके पर काम कर रहे कर्मचारियों की बुनियादी मांगों को लेकर चल रहे आन्दोलन को हर तरह से कुचलने की कोशिश हो रही है। पांच मई को अपनी बुनियादी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे करीब 43 कर्मचारियों को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया था।इनमें मेट्रो फीडर सेवा के चालक-परिचालक और मेट्रो के सफाईकर्मी शामिल थे। तमाम प्रयासों से छह मई रात को जेल से रिहा होने के बाद इनकी कानूनी मांगों की सुनवाई के बजाय इनका उत्पीड़न शुरू हो गया। मेट्रो कामगार संघर्ष समिति के संयोजक अजय स्वामी ने बताया कि
प्रदर्शन में शामिल मजदूर जमानत पर छूटने के बाद शुक्रवार को जब काम पर पहुंचे तो मेट्रोफीडर सेवा के इन 30 कर्मचारियों के नाम की सूची डिपो के बाहर लगी मिली। इस पर लिखा था ' नो ड्यूटी'
उन्होंने कहा कि इन कर्मचारियों को काम से निकाल दिया गया है साथ ही जो कर्मचारी पांच मई को छुट्टी पर थे, उन पर पांच सौ रुपये का जुर्माना लगाया गया है। अजन ने डीएमआरसी के और ठेकेदार कंपनी के इस तानाशाही रवैये की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि हमारी जायज मांगों को न मान कर डीएमआरसी और ठेकेदार कंपनियां अपने मजदूर विरोधी रवैये का परिचय दे रही हैं।
उधर डीएमआरसी सारी जिम्मेदारी ठेकेदार कंपनियों पर डाल रही है, जबकि कानूनन प्रथम नियोक्ता वही है। और श्रम कानूनों को लागू कराने की जिम्मेदारी भी डीएमआरसी है।
खैर, डीएमआरसी की इन हरकतों से जो भी मेट्रो की चमक दमक और गति को बरकरार रखने वाले कर्मचारियों के साथ उसके तानाशाही रवैये का खुलासा हो रहा है। अब जरूरत यह है हर जागरूक नागरिक मेट्रो कर्मचारियों के इस जायज आन्दोलन का समर्थन करे।