7.25.2008

हमारे साथी अरविंद नहीं रहे, उनको हम सब का सलाम

दायित्वबोध' पत्रिका के सम्पादक और क्रान्तिकारी कार्यकर्ता अरविन्द सिंह की गुज़री रात गोरखपुर में मृत्यु हो गई। वह पिछले सात दिनों से बीमार चल रहे थे। बुधवार की शाम उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां अचानक उनकी स्थिति बिगड़ गई। बृहस्पतिवार की रात 9:40 पर उन्होंने अन्तिम सांस ली। वे 43 बरस के थे।
विद्यार्थी जीवन से ही अरविन्द सामाजिक बदलाव के आन्दोलन से जुड़े रहे थे। छात्रों की पत्रिका 'आह्नान' के शुरू होने के वक्त वह उसके सम्पादक मंडल में भी थे। उन्होंने अनेक वर्षों तक गोरखपुर, वाराणसी, लखनऊ और दिल्ली में छात्रों, युवाओं और मज़दूरों के बीच काम किया था। मज़दूर अख़बार 'बिगुल' के सम्पादन-प्रकाशन के साथ ही वह गोरखपुर में सघन आन्दोलनात्मक और सांगठनिक गतिविधियों में व्यस्त थे। एक कुशाग्र लेखक और वक्ता होने के साथ ही अरविन्द एक क्षमतावान अनुवादक भी थे। उन्होंने बड़ी संख्या में सैद्धान्तिक सामग्री के अनुवाद के अलावा देनी दिदेरो के प्रसिद्ध उपन्यास 'रामो का भतीजा' का भी अनुवाद किया।
अरविन्द अपने पीछे पत्नी मीनाक्षी, जो कि स्वयं एक क्रान्तिकारी कार्यकर्ता हैं, और दोस्तों-मित्रों और हमराहों की एक बड़ी संख्या छोड़ गए हैं।

प्रिय साथी अरविंद को क्रांतिकारी सलाम!

यह सन्नाटा जब बीत चुका रहेगा यारो
यह ख़ामोशी जब टूट चुकी रहेगी
मुमकिन है कि हम मिलें
तो थोड़े से बचे हुए लोगों के रूप में
कहीं शाल-सागौन के घने सायों में
गुलमोहर-अमलतास-कचनार की बातें करते हुए
हृदय पर एक युद्ध की गहरी छाप लिये
और सबको दिखायी पड़ने वाला एक दूसरा
समूचा का समूचा युद्ध सामने हो।
सन्नाटे के ख़िलाफ
यह युद्ध है ही ऐसा
कि इसमें खेत रहे लोगों को
श्रद्धां‍जलि नहीं दी जाती,
बस कभी झटके से
वे याद आ जाते हैं
बरबस
अपनी कुछ अच्छाइयों की बदौलत।

3 comments:

Anonymous said...

साथी अरविन्द के बनारस में बिताये दिन याद आए। उनकी स्मृति को क्रान्तिकारी सलाम।
-अफ़लातून,राज्य अध्यक्ष,समाजवादी जनपरिषद(उ.प्र.)

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

बड़ी अफसोसनाक ख़बर है! 'दायित्वबोध' जैसी पत्रिकाएं दुर्लभ हैं. अरविंद जी के जीवन और कृतित्व को मेरी विनम्र श्रृद्धांजलि!

Anonymous said...

श्रद्धांजलि।