11.03.2007
जीवन-लक्ष्य
''दार्शनिकों ने दुनिया की तरह-तरह से व्याख्या की है, पर सवाल उसे बदलने का है!''
-- कार्ल मार्क्स
जिनका आज (5 मई) जन्मदिवस है।
जीवन-लक्ष्य
(18 वर्ष की आयु में मार्क्सद्वारा लिखी गई कविता)
कठिनाइयों से रीता जीवन
मेरे लिए नहीं,
नहीं, मेरे तूफानी मन को यह स्वीकार नहीं।
मुझे तो चाहिए एक महान ऊंचा लक्ष्य
और उसके लिए उम्र भर संघर्षों का अटूट क्रम।
ओ कला! तू खोल
मानवता की धरोहर, अपने अमूल्य कोषों के द्वार
मेरे लिए खोल!
अपनी प्रज्ञा और संवेगों के आलिंगन में
अखिल विश्व को बांध लूंगा मैं!
आओ,
हम बीहड़ और कठिन सुदूर यात्रा पर चलें
आओ, क्योंकि -
छिछला, निरुद्देश्य और लक्ष्यहीन जीवन
हमें स्वीकार नहीं।
हम, ऊंघते कलम घिसते हुए
उत्पीड़न और लाचारी में नहीं जियेंगे।
हम - आकांक्षा, आक्रोश, आवेग, और
अभिमान में जियेंगे!
असली इन्सान की तरह जियेंगे।
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4 comments:
Gr8 man...gr8!!!
i like ur Profile also....
अब रही बात प्रस्तुति की…तो जिनका लिखा है वो तो महान थे ही और कविता में भूख भी है…मगर यह प्रस्तुति लाजवाब!!!
आपका ब्लाग बहुत अच्छा है. इसे आप और सामग्री से भरपूर करें. उम्मीद है कि आप हिंदी ब्लाग जगत की निरर्थक बहसों से प्रभावित हुए बिना इसी तरह सार्थक बहस चलाते रहेंगे और हिस्सा लेते रहेंगे. हम आपके साथ हैं.
डिवाइन इंडिया,
आपको यह पोस्ट पसंद आई, यह जानकर अच्छा लगा। धन्यवाद।
रियाज़ भाई,
आप ने ठीक ही कहा, हिंदी ब्लॉग जगत लगातार निरर्थक बहसों में उलझा रहता है। कोशिश रहेगी कि सार्थक बहस चलती रहे। ब्लॉग संबंधी सुझाव के लिए बहुत-बहुत धन्यवादा
जितेद्र जी,
यह ब्लॉग पहले ही नारद पर रजिस्टर है।
बाकी कोई भी जरूरत होगी तो नारद और आपसे संपर्क जरूर करूंगा। वैसे भी यह ब्लॉग अक्षरग्राम से मदद लेकर ही बनाया है। हां, आप इस पोस्ट पर कोई टिप्पणी करते तो ज्यादा अच्छा लगता।
18 वर्ष की उम्र में जो सपना मार्क्स ने देखा उसे उन्होंने पूरी जिंदगी भर जीया। तमाम कष्ट और संघर्षों के बीच उन्होंने अपनी मौलिक रचनात्मकता से मनुष्यता को एक नयी मंजिल पर पहुचाया। उनकी गहरी मानवीय संवेदना ही तो थी जिसने उन्हें इतना महान बनाया।
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