3.16.2008

वाह रे शांति के प्रतीक...

आज शाम को बाल्‍कनी में खड़ा चाय पी रहा था, तभी सामने के घर में रहने वाले चिंटू ने अपनी खिलौना बंदूक से फटाक की आवाज़ निकाली, मैं उससे मजाक में कुछ कहता इससे पहले ही उसकी बाल्‍कनी के ऊपर बने छज्‍जे पर बैठे कबूतरों में हलचल हुई, सारे कबूतर उड़ गए, एक को छोड़कर। वो खिलौना बंदूक से आवाज निकलते ही दूसरी मंजिल पर बने छज्‍जे से गिर गया और फिर हिला नहीं....

पता नहीं बीमार था, जिसकी वजह से अचानक गिर कर मर गया, या कबूतर दिल की कहावत को चरितार्थ करते हुए आवाज से उसका दिल बैठ गया...

जो भी हो, इस घटना को देखने के बाद से मैं सोच रहा हूं कि कबूतर इतने कमजोर दिल होते हैं तो उन्‍हें शांति का प्रतीक क्‍यों बनाया गया है, क्‍या शांति और अहिंसा कमजोरों और कायरों को ही शोभा देती है?

क्‍या गांधीजी भी कमजोर होने की वजह से शांति और अहिंसा के हिमायती थे?

लगता है ये सत्‍ता चाहती है कि सब शांति के प्रतीक कबूतर से प्रेरणा लें और कमजोर बने रहें तभी हर मौके-बेमौके पर कुछ कबूतर उड़ाए जाते हैं..

जैसे सबक देना चाह रही हो कि हे जनता ! कमजोर बने रहो और शांति-शांति का राग अलापते रहो। अपने अधिकारों के लिए लड़ोगे तो देश की, समाज की और दुनिया की शांति के लिए हानिकारक होगा।

खैर, जो भी हो, लगता है शांति का प्रतीक काफी सोच-समझकर ही चुना गया है।

वाह रे शांति के प्रतीक !