8.09.2014

सपने में फासिस्‍टों का नाच

संदीप संवाद


Courtesy: The Guardian
मुझे अक्‍सर एक सपना आता है। सपने में, भारत के कुछ चरम-परम-गरम फासिस्‍टों को जनता ने चौराहे पर घेर रखा है। उन्‍हें ना कोई मार रहा है ना पीट रहा है। बस कुछ नौजवान एकठो म्‍यूजिक सिस्‍टम लाए हैं, और उसमें वेंगा ब्‍वॉयज का गाना 'ब्राजील...तारा रा तारा रारा रा' चला देते हैं। उसके बाद वे उन फासिस्‍टों को उस भोंडे गीत पर नाचने के लिए कहते हैं, चाहे उनकी मूंछों का कट कैसा भी हो। कुछेक नाचने वालों ने कच्‍छे पहने हुए हैं।
अचानक भीड़ में से कुछ बच्‍चे आगे निकलते हैं और हिटलर के पड़पोतों की मूंछे मरोड़ देते हैं,  इधर नौजवान उन्‍हें लगातार नाचते रहने को मजबूर कर रहे हैं। जनता ठहाके लगा-लगा कर तालियां पीट रही है, बच्‍चे लगातार उनकी मूंछें खींचते जा रहे हैं और कच्‍छे वालों के कच्‍छे खींच कर उन्‍हें तंग कर रहे हैं।

वैंगा ब्‍वॉयज का बेहूदा प्रलाप 'ब्राजील...' तेज़ आवाज़ में जारी है। जनता से घिरे फासिस्‍ट कोई चारा न देख, नाचते हुए अजीब-अजीब से मुंह बना रहे हैं, और बच्‍चे उनकी मूंछें-कच्‍छे खींचते हुए हंस रहे हैं।

पृष्‍ठभूमि में कभी संसद तो कभी लाल किला नजर आता है.... उधर, खाकी वर्दियों का रंग बदल कर रोटी जैसा होता जा रहा है। हथियार ---  फावड़े, कुदाल, हंसिया, ट्रैक्‍टर बनते जा रहे  हैं।

इस पूरी अवधि के दौरान, फासिस्‍ट बिना थमे वैंगा ब्‍याज के गीत पर नाचे जा रहे हैं। जनता अब भी तंज कसती हुई तालियां पीट रही है, बच्‍चे उनकी नाक के नीचे तराशी गयी मूंछे खींच-खींच कर उखाड़े दे रहे हैं--- ब्राजील.....

अचानक सपना टूट जाता है। देखता हूं कि पंद्रह अगस्‍त को लाल किले पर भाषण देते हुए एक फासिस्‍ट को बार-बार टीवी पर दिखाया जा रहा है। उसके वहां पहुंचने से पहले स्‍कूली बच्‍चों को सजधज कर तरह-तरह के रंगारंग कार्यक्रम पेश करने पड़े। चारों तरफ सुरक्षा का पुख्‍ता बंदोबस्‍त है....


मैं तुरंत टीवी बंद करता हूं, फिर आंखें बंद करके एक नींद लेने के इरादे से लेट जाता हूं।

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