3.30.2007

...युद्ध का मोर्चा हर जगह है

'' प्रत्‍येक कलाकार, प्रत्‍येक वैज्ञानिक, प्रत्‍येक लेखक को अब यह तय करना होगा कि वह कहां खड़ा है। संघर्ष से ऊपर, ओलंपियन ऊंचाईयों पर खड़ा होने की कोई जगह नहीं होती। कोई तटस्‍थ प्रेक्षक नहीं होता...युद्ध का मोर्चा हर जगह है। सुरक्षित आश्रय के रूप में कोई पृष्‍ठभाग नहीं है...कलाकार को पक्ष चुनना ही होगा। स्‍वतंत्रता के लिए संघर्ष या फिर गुलामी- उसे किसी एक को चुनना ही होगा। मैंने अपना चुनाव कर लिया है। मेरे पास और कोई विकल्‍प नहीं है।''
पॉल रोबसन, 24 जुलाई, 1937
(स्‍पेन में फासिस्‍ट ताकतों के विरुद्ध जारी संघर्ष के दौरान आह्वान)

3.21.2007

शब्द हथियार हैं


चारों तरफ मचा हुआ है
बौ‍द्धिक झिंगुरों का शोर।

उनके जीवन में
समाजवाद की बहार है,
इन कलमघसीटों के लिए
शब्द...
महज कमाई का जरिया हैं,
लेकिन
हमारे लिए

ये शब्द‍ ही हथियार हैं।
- सर्जक

साहित्य का उद्देश्

... जब तक साहित्‍य का काम केवल मनबहलाव का सामान जुटाना, केवल लोरियां गा-गाकर सुलाना, केवल आंसू बहाकर जी हल्‍का करना था, तब तक इसके लिए कर्म की आवश्‍यकता न थी। वह एक दीवाना था, जिसका गम दूसरे खाते थे, मगर हम साहित्‍य को केवल मनोरंजन और विलासिता की वस्‍तु नहीं समझते। हमारी कसौटी पर वही साहित्‍य खरा उतरेगा, जिसमें उच्‍च चिन्‍तन हो, स्‍वाधीनता का भाव हो, सौन्‍दर्य का सार हो, सृजन की आत्‍मा हो, जीवन की सच्‍चाइयों का प्रकाश हो- जो हममें गति और बेचैनी पैदा करे, सुलाये नहीं; क्‍योंकि अब और ज्‍यादा सोना मृत्‍यु का लक्षण है।
- प्रेमचंद

3.18.2007

पछतावा

लोग जिस चीज में विश्‍वास करते हैं उस पर प्राय: अमल नहीं करते हैं।
वे वह करते हैं जो सुविधाजनक है, फिर पछताते हैं।

- बॉब डिलन (मशहूर अमेरिकी गायक)

तुम पूछोगे...

तुम पूछोगे
क्‍यों नहीं करती
उसकी कविता
उसके देश के
फूलों और पेड़ों की बात
आओ देखो
गलियों में बहता लहू
आओ देखो
गलियों में बहता लहू
आओ देखो
गलियों में बहता लहू

*पाब्‍लो नेरूदा

3.17.2007

अंधेरा तो सिर्फ देहरी पर...

उस पार है
उम्मीदों और उजास की
पूरी दुनिया।
अंधेरा तो सिर्फ देहरी पर है...